"देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें"
आज अपनी इस भारत भूमि के हम सब पुत्र पश्चिम के अन्धानुकरण के कारण अत्यंत दुखी एवं व्यथित से प्रतीत होते हैं। पहले निर्धनता होने पर भी हम शांत एवं संतुष्ट थे, परन्तु आज पूर्व की अपेक्छा आर्थिक स्थिति अच्छी होने के उपरान्त भी हम व्यग्र एवं अधिक असंतुष्ट से प्रतीत होते हैं। कारण स्पष्ट है, हम अपनी दादी नानी की शिक्छाओं को भूल चुके हैं। आइये उनमें से कुछ का पुनः स्मरण कर उनका पालन करते हुए अपने बच्चों को संस्कारित कर उनका जीवन संघर्ष सरल करें। ध्यान रहे "नर सेवा ही नारायण सेवा है"
- अपने घर में 4, 5 तुलसी के पौधे अवश्य लगाएं, ये व्याधि निरोधक हैं।
- प्रतिदिन पहली रोटी गाय को और अंतिम रोटी कुत्ते को दें, ये अला - बला निवारक है।
- पक्छियों के प्रति दया भाव रखते हुए उनके लिए खुले स्थान पर दाना और पानी रखें।
- प्रति दिन एक मुट्ठी अनाज निकालें और उसे एकत्र कर अभावग्रस्त बंधुओं को दान करें। भूखों को भोजन देना सबसे बड़ा पुण्य है, यही धर्म है।
- जीवन में कम से कम एक पेड़ अवश्य लगाएं, और पेड़ों को पीड़ा न पहुचाएं, वो आपको प्राणवायु,फल, फूल एवं सूखी लकड़ी देते हैं।
- अन्न एवं जल की बर्बादी बिलकुल न करें, ये प्राण रक्छक हैं परन्तु सीमित हैं।
- संभव हो तो वर्षा जल का भू संचयन करें, अन्यथा एक दिन बूँद-बूँद जल के लिए तरसना पडेगा।
- बची हुई खाद्य सामग्री एवं कूड़ा पालीथीन में भर कर कभी न फेंकें, हो सकता है उसे गाय खा जाए और रोग से पीड़ित होकर प्राण त्यागे और आप गऊ ह्त्या के दोषी हों।
- मोच्छ दायिनी गंगा सहित किसी भी नदी को मैला न करें, उसमें फूल, पत्ती, मूर्ती एवं गन्दगी विसर्जित न करें, सभी नदियाँ अम्रतनीरा और हमारा जीवन हैं।
- गुरू ऋण से मुक्त होने के लिए कम से कम एक निर्धन बच्चे की शिक्छा में योगदान अवश्य करें।
- यदि आपके पास समय है तो ऐसे बच्चों को शिक्छा एवं संस्कार दान करें, जो साधन हीन हैं, परन्तु आपके अनुग्रह के अधिकारी हैं, यह महा दान है।
- हर आयुवर्ग के ऐसे वस्त्र जो पहनने योग्य हैं, उन्हें अच्छी हालत में सम्मानपूर्वक ऐसे अभावग्रस्त भाई एवं भगिनियों को प्रदान करें।
- आपके संज्ञान में ऐसे कार्य करने वाले लोग हों तो, उनका मनोबल बढाने के साथ उनका यथायोग्य सहयोग करें। इस प्रकार स्वयं को एवं अपने परिवार को सुखी बनाएं।
"परहित सरिस धरम नहीं भाई"