शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

रहिमन विपदा हू भली

रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय |
जान परत है जगत में हितु अनहितु सब कोय ||

आज सम्पूर्ण विश्व कोविड१९ की आपदा से जूझ रहा है, थोड़े दिनों में यह संकट समाप्त हो ही जाएगा | इस संकट से विश्व सहित भारत में जहां अत्यधिक आर्थिक हानि हुई है, वहीं भारत में बहुत सी ऐसी बातें पट लगी हैं, जो इसके पूर्व नहीं ज्ञात थीं |
·        भारतीय पुलिस का वह मानवीय रूप सबके सामने आया है, जिससे अभी तक हम अनजान थे | पुलिस से सज्जन लोग भयभीत रहते थे और अपराधी भयमुक्त, परन्तु इस आपदा ने पुलिस को जन जन का हितैषी एवं सम्माननीय बना दिया है
·        डाक्टरों के प्रति पूरे विश्व में बहुत समय बाद अति सम्मान का भाव जागृत हुआ है, फिर से उन्हें भगवान् के रूप में देखा जाने लगा है |
·        भारत के प्रधानमंत्री की नेतृत्व एवं कार्य पद्धति के प्रति जन जन में सम्मान एवं विश्वास बढ़ा है |
·        एक समुदाय विशेष का विद्रूप एवं आतंकी स्वरुप सबके सामने आया है, जो इस आपदा को और अधिक बढ़ाकर पूरे राष्ट्र को घोर संकट में डालने को उद्यत ही नहीं था, अपितु अपने ही हितैसेयों और रक्षकों पर थूकना, असभ्यता करना, हिंसक आक्रमण कर उनको ही मारने का प्रयास करना |
इसके अतिरिक्त इस आपदा से जहां बड़ी आर्थिक हानि हुई है, वहीं कई अपरोक्ष लाभ भी हुए हैं |
1.      जहां इस आपदा से अबतक पूरे राष्ट्र में ८०० के लगभग मृत्यु हुई है (अधिकाँश तो उनकी मृत्यु हुई है, जिन्होंने सरकारी निर्देशों का पालन नहीं करके स्वयं मृत्यु को आमंत्रित किया है), २४/३/२०२० से घोषित लाकडाउन से अभी तक दुर्घटनाओं में होने वाली मृत्यु नगण्य हो गई हैं (जो प्रतिदिन कई सौ होती थीं) इस प्रकार हजारों जीवन सुरक्षित रहे हैं |
2.      अपराधों में गुणात्मक कमी आई है(हत्या, बलात्कार, लूट आदि) |
3.      प्रकृति प्रसन्न हुई है, प्राणवायु की मात्रा बढी है, जिसका लाभ प्राणीमात्र को हुआ है |
4.      नदियाँ, जिनको साफ़ करने के लिए व्यर्थ ही खरबों रु व्यय किये जा रहे थे, और परिणाम नगण्य था | आज समस्त नदियाँ स्वतः निर्मल होने लगी हैं |
5.      बेजुवां प्राणियों के प्रति लोगों के ह्रदय में प्रेम उमड़ने लगा है |
6.      घर पर एक साथ रहने के कारण, आपसी सौहार्द बढ़ा है, स्त्रियों को घर में कितना कार्य करना पड़ता है, उसकी महत्ता लोगों को समझ आने लगी है |
7.      घर में सुरक्षित लोगों में नए नए उपयोगी कार्य करने की, तथा इस आपदा से निपटने के लिए आविष्कार करने की पृवृत्ति बढी है |
8.      भारतीय जीवन मूल्यों, परम्पराओं और संस्कारों की वैज्ञानिकता समाझ में आने लगी है, यथा नमस्ते करना, दाह संस्कार करना, दाह संस्कार से घर आने पर बगैर किसी वास्तु को हाथ लगाए पहने हुए कपड़ों को धोकर स्नान करना, बाहर से घर में आने पर हाथ पैर धोकर घर में आना, किसी बाहरी व्यक्ति से शारीरिक दूरी बनाए रखना, पूरे भोजन को जूठा नहीं करना, जूठे हाथ न लगें, एक कार्य सम्माप्त करने के उपरान्त ठीक प्रकार से हाथ धोना, पशु पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करना, गाय, कुत्ते, पक्षियों आदि के लिए प्रतिदिन उनका अंश निकालना आदि |
      यदि किसी आपदा से इतने परोक्ष एवं अपरोक्ष लाभ मिले हों तो थोड़े दिनों की विपदा ठीक ही है |  

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

इतिहास दोहराता है

इतिहास दोहराता है
     आज भारत में कांग्रेस सहित अधिकाँश राजनीतिक दल व्यक्ति या परिवार द्वारा संचालित हैं, और वे सभी स्वयं को निरंतर सत्ता में बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रकार के निर्लज्ज एवं अनैतिक हथकंडे अपनाने में भी कोई संकोच नहीं करते हैं | सत्ता में रहते हुए असीमित लूट के द्वारा अकूत संपदा एकत्रित कर रहे हैं, इसके लिए सभी राजनीतिक दल विभिन्न प्रकार से मुस्लिम तुष्टिकरण को बढ़ावा देते रहे हैं; यथा
·        कान्ग्रेस ने शाहबानो मामले में मुस्लिम कट्टरपंथियों को संतुष्ट करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को क़ानून बना कर बदल दिया, और कांग्रेस प्रधानमन्त्री ने कहा, कि भारत के संसाधनों पर प्रथम अधिकार मुसलमानों का है, इतना ही नहीं समझौता एक्सप्रेस में विस्फोट के दोषी मुसलमान आतंकियों को अपराध मुक्त कर, निरपराध हिन्दुओं को पकड़ा गया, आदि |
·        आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में केवल मौलानाओं को प्रतिमाह १८००० रु और उनके सहायक को १२००० रु. प्रतिमाह सरकारी खजाने से वेतन के रूप में दिया |
·        उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी द्वारा केवल मुसलमान लड़कियों को दसवीं पास करने के लिए आगे की पढ़ाई के लिए १५००० रु प्रतिमाह दिया गया, उनके कब्रिस्तानों को सरकारी व्यय पर दीवार बनवाकर सुरक्षित किया आदि |
·        तृणमूल एवं कांग्रेस द्वारा करोंड़ों मुस्लिम (बांग्लादेशी) घुसपैठियों को भारत में बसाने और उनके मतदाता पहहान पत्र आदि बनवाने का कार्य किया गया |
ये सत्तालोलुप दल मुस्लिम तुष्टिकरण द्वारा, सत्ता में बने रहकर, समझ रहे हैं, कि वे मुसलमानों का इस्तमाल कर रहे हैं, लेकिन मुस्लिम समुदाय भ्रमित नहीं है, उनका उद्येश्य स्पष्ट है, गजवाए हिन्द, अर्थात पूरे भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाना |
हिन्दू समाज गहरी नींद में सो रहा है, यह आज हो रहा है, अनादी काल से ऐसा ही होता आया है, वैदिक, बौद्ध, जैन आदि धर्मों एवं अनेक सिद्ध मनीषियों द्वारा आदि अति उच्च मानवीय मापदंड स्थापित करने के कारण, हिन्दू ने कभी किसी भय, खतरे या षड्यंत्र का पूर्वानुमान करने का प्रयाष नहीं किया, उन्हें तो पूरा विश्व अपनी ही तरह सरल एवं अपना कुटुंब लगता है | स्मरण करें ईसा से ३३५  वर्ष पूर्व ग्रीक के मकदूनिया से एक आक्रान्ता भारत भूमि पर आक्रमण करने बढ़ा, जिसका नाम सिकंदर था | आज के राजनैतिक दलों की तरह भारत बहुत छोटे छोटे राज्यों में बंटा हुआ था, प्रत्येक राजा अपने परिवार के शाषन को अक्षुण बनाए रखने और जनता को लूटने और अकूत संपदा एकत्रित करने में व्यस्त था, उन्हें उस खतरे का कोई अनुमान नहीं था | उस समय दूर तक्षशिला विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के प्राद्ध्यापक विष्णु गुप्त(कौटिल्य) इस खतरे को गंभीरता से भांप रहे थे, उन्होंने अकेले ही सभी राजाओं से संगठित होकर इस खतरे के विरुद्ध खड़े होने का आग्रह किया, लेकिन सत्तामद में मदांध इन राजाओं ने विष्णु गुप्त का अपमान किया, उपहास किया, विशाल मगध राज्य से तो उन्हें धक्के मारकर भगा दिया गया, इतना ही नहीं तक्षशिला में उनके साथियों ने भी उनका उपहास किया और कहा, तुम काल्पनिक खतरे से भयभीत हो | कौटिल्य ने अपनी शिखा खोल ली और विशाल नंदवंश के विनाश का और ग्रीक के खतरे से अकेले ही संघर्ष करने का प्रण लेकर, निकल पड़े युवा शक्ति को संगठित करने, कौटिल्य के प्रयासों से एक एक युवा जुड़ता गया और एक विशाल संगठित जुझारू जनसमुदाय खड़ा हो गया, उनके ही एक शिष्य चन्द्र्गुप्त मौर्य ने अहंकारी नंदवंश का पतन किया और अब मगध साम्राज्य सिकंदर के आक्रमण का प्रतिशोध करने के लिए तत्पर था | ईसा पूर्व ३२६ में सिकंदर ने तक्षशिला पर आक्रमण किया, वहां के राजा आम्भी ने न केवल उसका स्वागत किया, अपितु उसकी आर्थिक एवं सैन्य सहायता भी की, बदले में सिकंदर की सेना ने तक्षशिला को लूटा, खेत जलाए | कौटिल्य के प्रयासों से ही, सिकंदर आगे नहीं बढ़ सका, और जिस मार्ग से आया था उससे वापस भी नहीं जाने पाया, जल मार्ग से वापस पलायन करते हुए भी उसे सीमावर्ती गणराज्यों से घोर संघर्ष करना पड़ा और इसी में उसे एक विषबुझा तीर लगा, जिसके कारण उसे पीतज्वर हुआ और वह जीवित वापस ग्रीक नहीं जा सका, ईसा पूर्व ३२३ में उसका निधन हो गया |

     १९१९ में प्रथम विश्व युद्ध के समय इंग्लॅण्ड द्वारा तुर्की के खलीफा महदद षष्ठ पर आक्रमण करके उसे हटा देने के विरोध में, केवल भारत के मुसलमानों ने (अली बंधुओं) खलाफत आन्दोलन खड़ा किया, जिसका समर्थन मौलाना अबुल कलाम आजाद, मोहम्मद अली जिन्ना आदि मुसलमानों ने किया, तथा केवल मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए इसका नेतृत्व गांधीजी ने किया; खलीफा को तुर्की में हटाए जाने से भारत के लोगों का कोई लेना देना नहीं था; परन्तु यहाँ का सुन्नी मुस्लिम समुदाय भारत सहित पूरे विश्व को इस्लामी बनाकर सुन्नी बादशाह खलीफा के आधीन लाने का स्वप्न देख रहा था, ये अंग्रेजों का कुछ बिगाड़ नहीं सकते थे, अतएव अपने क्रोध को १९२१ में केरल के मालाबार में हिन्दुओं का संघार, बलात्कार, आगजनी करके निकाला | इस पूरे घटनाक्रम से कुछ भी सीखे बगैर हिन्दू समाज सो रहा था और हिन्दू नेतृत्व(कांग्रेस) केवल अपना अस्तित्व बनाए रखने में व्यस्त था | उस समय कांग्रेस में ही एक सजग कौटिल्य (डा. हेडगेवार) परिस्थितियों पर पैनी नजर रखे हुए था, उसने कांग्रेस का विरोध किया और कांग्रेस से त्यागपत्र दे कर, भविष्य के लिए राष्ट्रभक्त युवाशक्ति को संगठित करने का  उद्यम प्रारम्भ कर दिया, इसके लिए १९२५ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की, विभिन्न अनुसांगिक संगठनों द्वारा राष्ट्रभक्त युवा शक्ति जुडती गई और आज यह संख्या करोड़ों में हो गई, उसी का राजनीतिक अनुसांगिक संगठन भारतीय जनसंघ बनी, जो आज भारतीय जनतापार्टी के रूप में सामने है | १९४७ में मुस्लिम तुष्टिकरण और नेहरू की सत्तालोलुपता को संतुष्ट करने के लिए भारत का विभाजन कांग्रेस द्वारा करवा दिया गया | ३०/४० लाख से अधिक लोग मारे गए, लाखों ललनाओं के साथ मुस्लिम गुंडों द्वारा व्यभिचार किया गया, इतना ही नहीं, इन मदांध कांग्रेसियों ने, राजा आम्भी की तरह उनका सहयोग करते हुए, उन्हें यहाँ रहने की न केवल अनुमति प्रदान की, अपितु उन्हें सदैव विशेष अधिकार भी दिए गए | कौटिल्य की तरह हेडगेवार के अनुयायी प्रयासरत रहे, और अन्ततोगत्वा १९१४ में भारत पर कांग्रेस का शासन समाप्त कर भारतीय जनता पार्टी का शाषन स्थापित हुआ | कौटिल्य के समय राजतंत्र था, केवल मगध पर शासन स्थापित करने से भारत संगठित और बलशाली हुआ था; परन्तु आज स्थिति अधिक कठिन है, आज लोकतंत्र है, जन जन को जागृत करना होगा, अन्यथा यहाँ का तथाकथित बहुसंख्यक थोड़ी सी लालच में सत्तालोलुपों को सत्ता सौंपता रहेगा, और एक दिन यह राष्ट्र मुस्लिम राष्ट्र हो जाएगा, उस दिन उनके साथ वही वीभत्स व्यवहार होगा जो पाकिस्तान में हिन्दुओं, सिखों के साथ हो रहा है, जो १९ जनवरी १९९० को कश्मीर में पंडितों के साथ हुआ | 

शनिवार, 17 नवंबर 2018

मखमली पेबंद

भारत में ३१ अक्टूबर २०१८ को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने सरदार सरोवर बाँध के समीप गुजरात में ‘सरदार बल्लभ भाई पटेल’ की विश्व में सबसे ऊंची १८२ मीटर, ५८ मीटर आधार सहित कुल २४० मीटर ऊंची भव्य प्रतिमा का अनावरण किया, इस भव्य प्रतिमा के निर्माण में लगभग ३००० करोड़ रुपए व्यय हुए और इसके साथ ही सबसे ऊंची प्रतिमा का रिकॉर्ड भारत के नाम हो गया, निश्चित इससे सम्पूर्ण विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढी होगी, लेकिन इसके साथ ही महाराष्ट्र ने महान मराठा नायक, मुग़ल काल में हिन्दू साम्राज्य की स्थापना करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज की २१० मीटर ऊंची प्रतिमा स्थापित करने की घोषणा कर दी है, इसके पीछे विचार था कि इस प्रतिमा को चीन की स्प्रिंग टेम्पल ऑफ़ बुद्धा १५३ मीटर से ऊंची निर्मित कर इसे विश्व में सर्वाधिक ऊंची प्रतिमा का गौरव दिलवाना जाएगा, इसके निर्माण में ३६०० करोड़ रूपए से अधिक धन व्यय होने की संभावना है, इसके अतिरिक्त बाबा साहेब आंबेडकर की भी ३५० फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा १०० फुट ऊंचे आधार पर बनाने का प्रस्ताव है, जो स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी से ऊंची होगी, इसके साथ ही स्तूप भी बनेगा, जिसपर अनुमानित व्यय ६०० करोड़ से अधिक होगा, इसी प्रकार अमेरिका की स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी १५१ फुट ऊंची आधार सहित कुल ३०५ फुट ऊंची से अधिक ऊंची १५१ मीटर की भगवान् श्री राम की भव्य कांस्य प्रतिमा अयोद्ध्या में प्रस्तावित है | निश्चित इन सभी प्रतिमाओं के बन जाने पर भारत का मान और गौरव विश्व पटल पर बढेगा, और भारत कम से कम प्रतिमा के मामले में तो अमेरिका को बहुत पीछे छोड़ देगा, ऐसा मानना वर्तमान राजनैतिक दलों और शासकों का है |
यहाँ विश्व की सबसे ऊंची दस प्रतिमाओं का वर्णन पर्स्तुत है, उनमें से सरदार पटेल को छोड़कर कोई भी प्रतिमा किसी राजनेता की नहीं है, सभी प्रतिमाएं सर्व्य्मान्य आदर्शों के प्रतीक या सम्पूर्ण मानवता के कल्याण के लिए कार्य करने वाली विभूतियों की है, राजनेता कभी भी सर्वमान्य नहीं हो सकते हैं, एक वर्ग उनके योगदान को जितना महत्व देगा, दूसरे वर्ग अपनी प्रतिबद्धताओं के चलते किसी अन्य नेता को अधिक महत्व देंगे, और वे अपने आदर्शों के प्रतीकों की भव्य प्रतिमा बनवाना चाहेंगे, फिर भारत में तो इन प्रतिमाओं के साथ ही क्षेत्रवाद का संघर्ष एवं प्रतिस्पर्धा भी प्रारम्भ होती हुई प्रतीत हो रही है | पटेल साहब गुजरात से थे, तो उनकी प्रतिमा गुजरात में स्थापित हो रही है, शिवाजी महाराज मराठा थे, उनकी प्रतिमा महाराष्ट्र में प्रस्तावित है, अब प्रत्येक प्रांत एवं समुदाय के अनेक महान पुरुस हैं, जो वहां वन्दनीय हैं | वैसे भी पटेलजी की प्रतिमा किसी लगाव या सम्मान के रूप में बनी है, ऐसा नहीं लगता है, वास्तव में खंडित भारत के प्रथम प्रधानमंत्री द्वारा अपने एवं स्वयं के परिवार के अतिरिक्त सभी की उपेक्षा से कुंठित राजनेताओं द्वारा नेहरू परिवार के महिमा मंडन से बड़ी रेख खीच कर उनके आभा मंडल को कम करने का प्रयास मात्र किया है | शंका है कि भविष्य में यदि इस प्रकार की प्रतिस्पर्धा बढ़ी तो प्रत्येक प्रांत, और प्रत्येक राजनैतिक दल सत्ता में आने पर अपने अपने आदर्शों की भव्य प्रतिमाएं बनवाना प्रारम्भ न कर दे |
नाम मूर्ती
सम्बन्ध
स्थान
राष्ट्र
ऊंचाई
निर्माण
स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी
सरदार पटेल
सरदार सरोवर बाँध गुजरात
भारत
१८२ मीटर, ५८ मीटर आधार सहित कुल २४० मीटर 
३१ अक्टूबर २०१८
स्प्रिंग टैम्पल बुद्ध (वैरोचन)
महात्मा बुद्ध
लेशान, हेनान
चीन
१२८ मीटर, १९.३ मीटर के कमल सिंघासन एवं २५ मीटर पैडस्टल सहित कुल ऊंचाई १५३ मीटर है
२००८
लेक्यून सेक्टयार (गौतम बुद्ध)
महात्मा बुद्ध
खातकान तांग मोंवा के पास
म्यानमार
११५.८ मीटर, १३.४१ मीटर के कमल सिंघासन सहित कुल ऊंचाई १२९.२ मीटर
२००८
उशिकु दायबुत्सू बुद्ध प्रतिमा
(बुद्ध अमिताभ बुद्ध)
उशिकु आईबराकी प्रीफ्रेक्चर
जापान 
१०० मीटर, १० मीटर सिंघासन और १० मीटर पैडस्टल मिलाकर १२० मीटर
१९९३
सेंदाई डाईकानन
कानन, गुयानयिन
सेंदाई मियागी प्रीफेक्चर
जापान
१०० मीटर
१९९१
गुईशान गुआनयिन
(गुआनयिन) वेइशन
चांगशा हुनान
चीन
९९ मीटर गिल्ड कांस्य मूर्ती
२००९
थाईलैंड के महान बुद्ध
गौतम बुद्ध
आंग थोंग
थाईलैंड
सोने से पुती हुई कंक्रीट की प्रतिमा ९२ मीटर
२००८
किता नो मियाको उद्यान के दाई कानन
कानन बायुक कानन
अशिबेत्सू होक्काइदो
जापान
८८ मीटर
१९८९
द मदर लैंड काल्स
मातृभूमि की प्रतीक महिला
माम्येव कुर्गेन वोल्गोग्राद
रूस
८५ मीटर
१९६७
आवाजी कानन
कानन गुआनयिन

जापान
८० मीटर, २० मीटर पैडस्टल के साथ कुल १०० मीटर
१९८२

यदि विश्व में सर्वाधिक ऊंची प्रतिमा बनवाने की विशेस आवश्यकता थी, तो किसी राजनेता की न होकर, भारत की उन असंख्य सर्वमान्य महान विभूतियों में से (उत्तर दक्षिण को आध्यात्मिक, सांस्क्रतिक रूप से जोड़ने वाले महर्षि अगस्त, शून्य के आविष्कारक ब्रम्हगुप्त, भास्कराचार्य, औषधि विज्ञान के प्रणेता धन्वन्तरी, शुश्रुत, चरक, या वृहत्तर भारत माता की भव्य मूर्ती आदि) किसी की बनाई जा सकती थी, इससे राष्ट्र में मूर्ती निर्माण की प्रतिस्पर्धा नहीं बढ़ती | क्या भारत जैसा राष्ट्र जहां गरीबी रेखा के नीचे २३.६% (२७.६ करोड़) लोग हैं, लगभग २१.५% लोग रोज भूखे सोते हैं, २६% अनपढ़, ५५% बच्चे कुपोषण से ग्रसित हैं, ५१% महिलाएं रक्ताल्पता से ग्रसित हैं, ६०% से अधिक लोगों को सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध नहीं है, पीने योग्य साफ़ पानी तक कहीं उपलब्ध नहीं है, इन मूर्तियों पर होने वाले हजारों करोड़ रुपए के निरर्थक अपव्यय को सहने की स्थिति में है ? चारों ओर अराजकता है, लूट हत्या बलात्कार का बोलबाला है, सुरक्षा बलों की कमी है, उनको वेतन देने के लिए सरकारों के पास धन नहीं है | जनता को सुलभ चिकित्सा, सुलभ शिक्षा, सुलभ सुरक्षा, आदि सरकार के कुछ अति महत्व पूर्ण कार्य है, परन्तु उनके लिए धन का रोना है, इन मूर्तियों के लिए धन की कोई कमी नहीं है, क्योंकि कि इस प्रकार के निर्माण कार्यों में इन माननीयों को मोटा कमीशन प्राप्त होता है | सुरक्षा बलों के वेतन या कर्मचारियों की पेंशन से उन्हें कुछ भी प्राप्त नहीं होने वाला है, इसलिए वह अर्थ व्यवस्था पर बोझ है, जबकि विधायकों और सांसदों की पेंशन कोई बोझ नहीं है |
      केवल स्टैच्यू से किसी भी नंगे, भूखे, रोगी, एवं दुराचारी राष्ट्र का सम्मान कभी नहीं बढ़ता है, यह ऐसे ही है कि किसी का पूरा परिवार रोगी, दुराचारी एवं फटे हाल हो और उसका मुखिया अपने जगह जगह से तार तार वस्त्रों को सिल कर आवश्यक लज्जा ढकने के स्थान पर किसी एक जगह कीमती मखमल का पेबंद लगा कर इतराने लगे | आज सर्वाधिक ऊंचे दस स्टैच्यूओं में अमेरिका का स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी कहीं भी नहीं है, फिर भी सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्द है, इस स्टैच्यू का निर्माण भी अमेरिका ने नहीं करवाया है, १८८६ में इसे फ्रांस ने अमेरिका से मित्रता के प्रतीक के रूप में अमेरका को भेंट किया था | क्या अमेरिका इस स्थिति में नहीं है, कि वह सबसे ऊंचा और भव्य स्मारक बनवा ले ? उसने स्टैच्यू नहीं बनवाए, अपितु उसने वह किया जिससे उसको भेंट किया गया एक छोटा सा स्टैच्यू इन सब पर भारी पड़ गया है |

      समाज में या विश्व में गरिमा, सम्मान और गौरव पाने के लिए किसी के लिए भी तीन चीजें आवश्यक हैं : १. चरित्र २. बल ३. सम्पन्नता | हम अमेरिका के स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी से ऊंचे स्मारक बनवा कर, क्या स्वयं के साथ छलावा नहीं कर रहे हैं ? चरित्र के विषय में, अमेरिका में एक वाटर गेट काण्ड में १९७४ में तत्कालीन प्रेसिडेंट निक्सन को सजा सुना दी गई और उन्हें अपना पद तो त्यागना ही पड़ा; वहीं भारत में जनप्रतिनिधि प्रत्येक कार्य में बड़ा कमीशन वसूलते हैं, फिर चाहे बाँध, सड़क, पुल निर्माण हो, रक्षा सौदे हों, बच्चों का भोजन(विद्यालयों में दिया जाने वाला पुष्टाहार, उनकी पुस्तकें, उनकी ड्रेस आदि), गरीबों की दवा की खरीद पर, राष्ट्र के विकास के नाम पर मिलने वाली विकासनिधि पर, इस राष्ट्र में लोकतंत्र के चारों स्तम्भ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं मीडिया सभी आकंठ भृष्टाचार में डूबे हुए हैं, यहाँ अति संपन्न व्यक्ति भी सामान्य जनता का अरबों रुपया लेकर, जनप्रतिनिधियों के सहयोग से विदेश भाग जाता है | इसी प्रकार अमेरिका में एक अनैतिक प्रेम प्रसंग (मोनिका लेविंस्की एवं क्लिंटन) में १९९८ में वहां के राष्ट्रपति क्लिंटन को अपराधी पाया गया और, दण्डित किया गया; वही भारत में अधिकाँश निर्वाचित जनप्रतिनिधि दुर्दान्त अपराधी एवं व्यभिचारी हैं | अपवाद स्वरूप कुछ को छोड़ दें, तो सभी जनप्रतिनिधियों के अनैतिक सम्बन्ध हैं, इसका प्रभाव समाज पर यह पड़ रहा है कि नारी को माँ मानने वाले इस राष्ट्र में दुधमुही बच्चियों से लेकर अति बुजुर्ग महिलाओं तक के साथ खुले आम बलात्कार हो रहे हैं और अपराधी पकड से बाहर | अब बल की बात की जाय, तो अमेरिका में राष्ट्रद्रोहियों और आतंकियों के साथ कठोर वर्ताव करने में सब एक साथ होते हैं, वहीं भारत में आतंकियों के बचाव के लिए रात्रि में न्यायालय खुलता है, अमेरिका अपने शत्रु को ढूढकर हजारों किलो मीटर दूर बैठे दुसरे राष्ट्र में घुस कर मारने की सामर्थ्य रखता है (ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में घुस कर मारा), वहीं हम अपने शत्रु राष्ट्र को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने में डरते हैं, और अमेरिका से आग्रह करते हैं, कि वह उसे आतंकवादी राष्ट्र घोषित करे | अब सम्पन्नता, तो अमेरिका में सामान्य जनता का जो जीवन स्तर है, जो जन सुविधाएं हैं, जो सुरक्षा व्यवस्था है, क्या हम उसके लाखवें अंश के बराबर भी जनता को दे पा रहे  हैं ? आज अमेरिका अपने धन के प्रभाव से विश्व के किसी भी राष्ट्र को झुकाने में सक्क्षम है, उसके आर्थिक प्रतिबन्ध से बड़ा से बड़ा राष्ट्र भी प्रभावित हो जाता है | अमेरिका ने अपने यहाँ भले ही कोई स्टैच्यू बनाकर धन का अपव्यय न किया हो लेकिन उसकी सामर्थ्य के कारण आज एक छोटा सा स्टैच्यू (स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी) संसार के तमाम विशाल मूर्तियों और स्तंभों पर भारी है | अच्छा होता भारत के नेता इस तथ्य को समझ पाते और राष्ट्र की वास्तविक चारित्रिक, सामरिक, आर्थिक सम्पन्नता को बढाने में ध्यान लगाते तो, कोई भी स्तम्भ या मीनार ही विश्व प्रसिद्द होती |

सोमवार, 29 अक्तूबर 2018

महाभारत

महाभारत
लगभग अब से ५००० वर्ष पूर्व महाभारत हुआ था, जिसके विषय में शंकाएं हो सकती हैं, कि वह हुआ भी था या नहीं, वह काल्पनिक है, वह वास्तविक है आदि आदि; परन्तु एक बात निश्चित है कि वास्तविक जीवन में महाभारत निरंतर होता रहता है, द्रोपदी का चीर हरण प्रतिदिन हो रहा है, केवल पात्रों के नाम बदलते हैं | शासक दुर्योधन है, उसके आधीन व्यवस्था दु:शासन है और सामान्य जनता द्रोपदी है | हम यहाँ १९४७ से कुछ पूर्व से प्रारम्भ हुई महाभारत का सिंघावलोकन करने का प्रयास करेंगे | पिछले सैकड़ों वर्षों से अनेक पारकीय आक्रान्ताओं द्वारा इस भारत भू की जनता को बेतहाशा लूटा खसोटा जाता रहा, और वह निरीह द्रोपदी सी भगवान् भरोसे अपने इस राष्ट्र के तमाम शूरवीरों की ओर कातर दृष्टि से, उसी प्रकार निहार रही थी, जैसे कभी भरी सभा में द्रोपदी ने विश्वविजेता का दंभ रखने वाले अपने शूरवीर पतियों की ओर निहारा था; परन्तु उन सभी शूरवीरों की गर्दनों का बोझ उनके कंधे ही  नहीं सम्हाल पा रहे थे | ऐसे में एक आशा की किरण दिखाई दी कि अब भारत स्वतंत्र होगा, यहाँ धर्म का शासन होगा, धर्मराज युधिष्ठिर का शासन होगा; परन्तु नियति को तो कुछ और ही मंजूर था | अचानक सत्ता के दो केंद्र प्रगट हो गए दुर्योधन (जिन्ना) और पांडव (नेहरू) | जिन्ना ने कहा कि हम हिन्दुओं के साथ नहीं रह सकते अतएव राष्ट्र का विभाजन चाहिए | तत्कालीन पितामह (महात्मा गांधी) ने आश्वस्त किया कि राष्ट्र का विभाजन नहीं होगा, यदि होगा तो उनकी लाश पर होगा | पांडव पक्ष(हिन्दू) आश्वस्त हो गए, क्यों कि वही पितामह का सम्मान करते और उनसे स्नेह रखते थे; लेकिन पितामह(गांधीजी) तो दुर्योधन (जिन्ना)  की जिद के समक्ष विवश थे और धर्म के आधार पर राष्ट्र का विभाजन हो गया | इन शासकों (कौरवों) की जिद और उनके आधीन व्यवस्था (दु:शासन) ने द्रोपदी(प्रजा) का खूब चीर हरण किया, लाखों निरपराध लोगों की हत्या की गई, करोड़ों बेघर हो गए, फिर भी भारत में समस्या जस की तस रही | कौरवों का साथ देने के कारण पितामह को अपने प्राण देने पड़े थे, और उनका बध पांडवों ने किया था यहाँ भी गांधी की हत्या हुई, और हत्या करने वाला पांडव (हिन्दू) था | जनता ने सोचा कि चलो अब चैन से रहेंगे, अब तो धर्म का शासन स्थापित हो गया, अब तो द्रोपदी का चीर हरण नहीं होगा | परन्तु राज्य सिंघासन तो उस शांतनु का था, जिसने अपने सुख के लिए अपने ही युवा पुत्र देव व्रत को उसके अधिकारों से वंचित कर दिया था, उससे धर्मराज्य की अपेक्षा ही गलत थी; यह सिंघासन का ही प्रभाव था की सत्ता पाते ही घोटालों का खेल प्रारम्भ हो गया | सत्तासीन प्रधान (नेहरू) कब पांडव से दुर्योधन बन गया जनता (द्रोपदी) को पता ही नहीं चला | जीप घोटाले से प्रारम्भ हुआ चीर हरण लाखों करोड़ के घोटालों तक पहुँच गया | इन सत्ताधीशों को जनता (द्रोपदी) के तनपर सज्जित लज्जा वसन बोझिल लगने लगे धीरे धीरे व्यवस्था (दु:शासन) द्वारा उन्हें खींचा गया (सार्वजनिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा, सुरक्षा, पेंशन आदि) और दरबारियों (जनप्रतिनिधियों) के तन पर रत्नजडित आभूषण (असीमित अधिकार, विभिन्न श्रेणी की सुरक्षा, स्वास्थ, विकास निधि, आजन्म पेंशन, आदि आदि) सजने लगे | सामान्य जनता और गरीब (द्रोपदी लगभग निर्वसना) होती गई और जनप्रतिनिधि सहित व्यवस्था में भागीदार नौकरशाह और बड़े व्यापारी संपन्न से अति संपन्न होते चले गए | जनता कातर दृष्टि से देख रही थी कि, कोई गांडीवधारी, कोई गदाधारी उसकी अस्मिता की रक्षा के लिए आगे आए, तभी २०१४ के चुनाव में नरेंद्र मोदीजी के रूप में जनता को गांडीवधारी अर्जुन की छवि दिखाई दी और उसने उल्लासित होकर उन्हें विजय तिलक लगा कर प्रचंड बहुमत का अमोघ अस्त्र देकर दुर्योधन से संघर्ष के लिए बड़ी आशा और अपेक्षा के साथ अग्रसित किया | मोदीजी ने आश्वस्त भी किया था, कि जनता से लुटे एक एक पैसे का हिसाब लुटेरों से लेंगे और उन्हें दण्डित करेंगे, मात्र सौ दिनों में विदेशों में जमा काले धन को देश में ले आएँगे, यह धन इतना होगा कि यदि लोगों के खातों में डाला जाय तो प्रत्येक खाते में १५ लाख रु आ सकेंगे | जनता (द्रोपदी) के तन पर फिर से गरिमा युक्त परिधान होंगे | अपने वादे के अनुरूप उन्होंने कार्य करने का प्रयाष भी किया, विभिन्न योजनाओं द्वारा (जन धन योजना, आवास योजना, उज्वला योजना, आदि) के द्वारा निर्वसना द्रोपदी को लज्जा ढकने योग्य वस्त्र पहनाने का प्रयास किया है | उन्होंने नोट बंदी कर युद्ध छेड़ दिया, विदेशों से संपर्क कर काले धन के खातेदारों के नाम भी प्राप्त किये, जिस प्रकार पहले अर्जुन ने यह समझने में भूल की थी, कि उसका युद्ध केवल कौरवों से होगा; परन्तु युद्धक्षेत्र में देखा तो सभी बन्धु-बांधव युद्ध के लिए तत्पर थे, तब उन्हें मोह हो गया और कृष्ण से कहा कि में इनसे युद्ध नहीं करूंगा, इन अपनों को मारकर मुझे स्वर्ग का राज्य भी नहीं चाहिए | उसी प्रकार कौन्तेय (मोदीजी) को एक बार फिर मोह हो गया | जब नोट बंदी में काले धन के कुबेरों पर नजर पडी तो, वहां सब अपने बन्धु बांधव ही थे, अपनी ही पार्टी के लोग थे, विदेशी खातों में भी इन्ही अपनों को ही पाया, जीजाजी के जमीन घोटाले की जांच बढी, तो पता चला अपने ही करीबी भी इस गोरख धंधे में लगे हुए हैं, ऐसे में शव्य्शाची किस प्रकार अपनों पर ही प्रहार करते, अतएव अपने अस्त्र शस्त्र एक ओर रख कर किंकर्तव्यविमूढ़ हो कर बैठ गए | जब और गहराई से देखा तो ललित मोदी, मेहुल चौकसी, नीरव मोदी, अम्बानी, अडानी आदि सब अपने ही गुजरात के दिखे, विजयमाल्या अपनी ही पार्टी का दिखा, ऐसे में इनका बध करके शासन कैसे कर पाएंगे ? अगले चुनाव में करोड़ों के मंच कौन बनवाएगा ? दुर्भाग्य है कि वहां कोई मधुसूदन नहीं मिला, जो गीता का उपदेश देकर उन्हें कर्तव्य बोध कराता |
महाभारत में दुर्बुद्धि दुर्योधन सर्वथा अयोग्य एवं अहंकारी था, और पांडव कहीं योग्य एवं विनम्र थे अतएव सम्पूर्ण कौरव पक्ष किसी प्रकार पांडवों को मार्ग से हटाना चाहता था, इसके लिए समय समय पर षड्यंत्रों का सहारा लिया गया, कभी लाक्षा गृह में जलाकर मारने का प्रयास किया, तो कभी महा क्रोधी दुर्वासा ऋषि को, अति विपन्नता में गुजारा कर रहे पांडवों का आतिथ्य लेने भेजा आदि | ठीक उसी प्रकार आज भी दुर्बुद्धी एवं अहंकारी दुर्योधन (राहुल गांधी) और समस्त कौरव पक्ष (विपक्ष) अपने को अर्जुन (मोदीजी) के समक्ष असमर्थ और असहाय पा रहे हैं, इसलिए उनकी हत्या करने या अपध्स्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के षड्यंत्र रच रहे हैं, कभी मणि शंकर एयर पाकिस्तान से मोदीजी को हटाने में सहायता मांगते हैं, तो कभी भीमा कोरेगांव जैसे षड्यंत्र रचे जाते हैं | यह सत्य है कि आज के अर्जुन (मोदीजी) ने मोह के वशीभूत होकर अपने अस्त्र रख दिए हैं और आजतक किसी भी भ्रष्टाचारी के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की है; परन्तु अभी युद्ध छोड़ा नहीं है, सम्पूर्ण विपक्ष एवं सरकार के भ्रष्टाचरियों को निरंतर भय है, कि कहीं उन्हें कर्तव्य बोध न हो जाए, और वे युद्ध के लिए सन्नद्ध हो जाएं, उस स्थिति में इन सभी पापियों का सुरक्षित ठिकाना कारागृह होगा; अतएव ये सभी मिलकर या तो षड्यंत्र द्वारा उनकी हत्या करवा देना चाहते हैं, या अनर्गल प्रलाप कर और झूठे अप्रमाणिक आरोप लगा कर द्रोपदी को भ्रमित कर, उसे ही अर्जुन से विमुख करना चाहते हैं | यदि द्रोपदी स्वयं अपने तारनहार अर्जुन (मोदीजी) पर अविश्वास कर कौरवों की गोद में बैठ जाती है, तो यह धर्मयुद्ध स्वतः समाप्त हो जाएगा और पुनः कौरवों का नंगा नाच प्रारम्भ हो जाएगा ( लाखों करोड़ के घोटाले, भगवा आतंकवाद, लक्षित हिंसा अधिनियम आदि) |
आज कांग्रेस अध्यक्ष (दुर्योधन) जब मोदीजी को चोर कहता है, तो वह वास्तव में मोदी (पांडव पक्ष) का उपहास उड़ाता है, अट्टहास करता है, और जनता (द्रोपदी) को बताना चाहता है कि देखो तुम्हारे इस तारनहार अर्जुन को हमने अपनी व्यवस्था का दास बना लिया है, जब वह बगैर किसी प्रमाण के कहता है कि राफेल सौदे में भृष्टाचार हुआ है, तो जनता को बताना चाहता है, कि सत्ता दुर्योधन है, जो भी सत्ता में रहेगा, वह वैसा ही करेगा जैसा हमने किया | और बताना चाहता है कि, सभी पांडव सामूहिक रूप से राजनीति के द्यूत में द्रोपदी (जनता) को हार चुके हैं | अब यह द्रोपदी हमारी (शासकों) दासी है | इसका चीर हरण केवल हम ही नहीं हर शासक करेगा, वैसे भी जिस दिन इसे पाँचों भाइयों में बाँट लिया था; इसका चीर हरण तो उसी दिन हो गया था | आज स्थिति यह है कि प्रत्येक छोटा बड़ा दरवारी (जनप्रतिनिधि) घूसखोरी, कमीशनखोरी, कालाबाजारी, आदि तमाम अनैतिक व्यवस्थाओं (दु:शासन) की सहायता से इस निर्वसना द्रोपदी (निरीह जनता) को अपनी गोदी में बिठाने (वोट लेने ) के लिए अपनी अनावृत जंघा (सर्वविदित अनैतिक, अनाचारी व्यवहार) को पीट रहा है, और यह जनता अपने रक्षकों (पतियों) की कायरता से निराश किसी अलौकिक शक्ति (कृष्ण) की आश लगाए बैठी है, जो हर समय नहीं प्रगट होती है, अतएव अत्याचारी और भृष्ट कौरवों के तांडव से बचने के लिए, पुनः अपने अर्जुन पर ही भरोषा करना पड़ेगा |