महाभारत
लगभग अब से ५००० वर्ष पूर्व महाभारत हुआ था, जिसके विषय में शंकाएं हो सकती
हैं, कि वह हुआ भी था या नहीं, वह काल्पनिक है, वह वास्तविक है आदि आदि; परन्तु एक
बात निश्चित है कि वास्तविक जीवन में महाभारत निरंतर होता रहता है, द्रोपदी का चीर
हरण प्रतिदिन हो रहा है, केवल पात्रों के नाम बदलते हैं | शासक दुर्योधन है, उसके
आधीन व्यवस्था दु:शासन है और सामान्य जनता द्रोपदी है | हम यहाँ १९४७ से कुछ पूर्व
से प्रारम्भ हुई महाभारत का सिंघावलोकन करने का प्रयास करेंगे | पिछले सैकड़ों वर्षों
से अनेक पारकीय आक्रान्ताओं द्वारा इस भारत भू की जनता को बेतहाशा लूटा खसोटा जाता
रहा, और वह निरीह द्रोपदी सी भगवान् भरोसे अपने इस राष्ट्र के तमाम शूरवीरों की ओर
कातर दृष्टि से, उसी प्रकार निहार रही थी, जैसे कभी भरी सभा में द्रोपदी ने विश्वविजेता
का दंभ रखने वाले अपने शूरवीर पतियों की ओर निहारा था; परन्तु उन सभी शूरवीरों की
गर्दनों का बोझ उनके कंधे ही नहीं सम्हाल
पा रहे थे | ऐसे में एक आशा की किरण दिखाई दी कि अब भारत स्वतंत्र होगा, यहाँ धर्म
का शासन होगा, धर्मराज युधिष्ठिर का शासन होगा; परन्तु नियति को तो कुछ और ही
मंजूर था | अचानक सत्ता के दो केंद्र प्रगट हो गए दुर्योधन (जिन्ना) और पांडव (नेहरू)
| जिन्ना ने कहा कि हम हिन्दुओं के साथ नहीं रह सकते अतएव राष्ट्र का विभाजन चाहिए
| तत्कालीन पितामह (महात्मा गांधी) ने आश्वस्त किया कि राष्ट्र का विभाजन नहीं
होगा, यदि होगा तो उनकी लाश पर होगा | पांडव पक्ष(हिन्दू) आश्वस्त हो गए, क्यों कि
वही पितामह का सम्मान करते और उनसे स्नेह रखते थे; लेकिन पितामह(गांधीजी) तो दुर्योधन
(जिन्ना) की जिद के समक्ष विवश थे और धर्म
के आधार पर राष्ट्र का विभाजन हो गया | इन शासकों (कौरवों) की जिद और उनके आधीन
व्यवस्था (दु:शासन) ने द्रोपदी(प्रजा) का खूब चीर हरण किया, लाखों निरपराध लोगों
की हत्या की गई, करोड़ों बेघर हो गए, फिर भी भारत में समस्या जस की तस रही | कौरवों
का साथ देने के कारण पितामह को अपने प्राण देने पड़े थे, और उनका बध पांडवों ने
किया था यहाँ भी गांधी की हत्या हुई, और हत्या करने वाला पांडव (हिन्दू) था | जनता
ने सोचा कि चलो अब चैन से रहेंगे, अब तो धर्म का शासन स्थापित हो गया, अब तो
द्रोपदी का चीर हरण नहीं होगा | परन्तु राज्य सिंघासन तो उस शांतनु का था, जिसने
अपने सुख के लिए अपने ही युवा पुत्र देव व्रत को उसके अधिकारों से वंचित कर दिया
था, उससे धर्मराज्य की अपेक्षा ही गलत थी; यह सिंघासन का ही प्रभाव था की सत्ता
पाते ही घोटालों का खेल प्रारम्भ हो गया | सत्तासीन प्रधान (नेहरू) कब पांडव से
दुर्योधन बन गया जनता (द्रोपदी) को पता ही नहीं चला | जीप घोटाले से प्रारम्भ हुआ
चीर हरण लाखों करोड़ के घोटालों तक पहुँच गया | इन सत्ताधीशों को जनता (द्रोपदी) के
तनपर सज्जित लज्जा वसन बोझिल लगने लगे धीरे धीरे व्यवस्था (दु:शासन) द्वारा उन्हें
खींचा गया (सार्वजनिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा, सुरक्षा, पेंशन आदि) और
दरबारियों (जनप्रतिनिधियों) के तन पर रत्नजडित आभूषण (असीमित अधिकार, विभिन्न
श्रेणी की सुरक्षा, स्वास्थ, विकास निधि, आजन्म पेंशन, आदि आदि) सजने लगे |
सामान्य जनता और गरीब (द्रोपदी लगभग निर्वसना) होती गई और जनप्रतिनिधि सहित
व्यवस्था में भागीदार नौकरशाह और बड़े व्यापारी संपन्न से अति संपन्न होते चले गए |
जनता कातर दृष्टि से देख रही थी कि, कोई गांडीवधारी, कोई गदाधारी उसकी अस्मिता की
रक्षा के लिए आगे आए, तभी २०१४ के चुनाव में नरेंद्र मोदीजी के रूप में जनता को
गांडीवधारी अर्जुन की छवि दिखाई दी और उसने उल्लासित होकर उन्हें विजय तिलक लगा कर
प्रचंड बहुमत का अमोघ अस्त्र देकर दुर्योधन से संघर्ष के लिए बड़ी आशा और अपेक्षा
के साथ अग्रसित किया | मोदीजी ने आश्वस्त भी किया था, कि जनता से लुटे एक एक पैसे
का हिसाब लुटेरों से लेंगे और उन्हें दण्डित करेंगे, मात्र सौ दिनों में विदेशों
में जमा काले धन को देश में ले आएँगे, यह धन इतना होगा कि यदि लोगों के खातों में
डाला जाय तो प्रत्येक खाते में १५ लाख रु आ सकेंगे | जनता (द्रोपदी) के तन पर फिर
से गरिमा युक्त परिधान होंगे | अपने वादे के अनुरूप उन्होंने कार्य करने का प्रयाष
भी किया, विभिन्न योजनाओं द्वारा (जन धन योजना, आवास योजना, उज्वला योजना, आदि) के
द्वारा निर्वसना द्रोपदी को लज्जा ढकने योग्य वस्त्र पहनाने का प्रयास किया है |
उन्होंने नोट बंदी कर युद्ध छेड़ दिया, विदेशों से संपर्क कर काले धन के खातेदारों
के नाम भी प्राप्त किये, जिस प्रकार पहले अर्जुन ने यह समझने में भूल की थी, कि
उसका युद्ध केवल कौरवों से होगा; परन्तु युद्धक्षेत्र में देखा तो सभी बन्धु-बांधव
युद्ध के लिए तत्पर थे, तब उन्हें मोह हो गया और कृष्ण से कहा कि में इनसे युद्ध
नहीं करूंगा, इन अपनों को मारकर मुझे स्वर्ग का राज्य भी नहीं चाहिए | उसी प्रकार
कौन्तेय (मोदीजी) को एक बार फिर मोह हो गया | जब नोट बंदी में काले धन के कुबेरों
पर नजर पडी तो, वहां सब अपने बन्धु बांधव ही थे, अपनी ही पार्टी के लोग थे, विदेशी
खातों में भी इन्ही अपनों को ही पाया, जीजाजी के जमीन घोटाले की जांच बढी, तो पता
चला अपने ही करीबी भी इस गोरख धंधे में लगे हुए हैं, ऐसे में शव्य्शाची किस प्रकार
अपनों पर ही प्रहार करते, अतएव अपने अस्त्र शस्त्र एक ओर रख कर किंकर्तव्यविमूढ़ हो
कर बैठ गए | जब और गहराई से देखा तो ललित मोदी, मेहुल चौकसी, नीरव मोदी, अम्बानी,
अडानी आदि सब अपने ही गुजरात के दिखे, विजयमाल्या अपनी ही पार्टी का दिखा, ऐसे में
इनका बध करके शासन कैसे कर पाएंगे ? अगले चुनाव में करोड़ों के मंच कौन बनवाएगा ?
दुर्भाग्य है कि वहां कोई मधुसूदन नहीं मिला, जो गीता का उपदेश देकर उन्हें
कर्तव्य बोध कराता |
महाभारत में दुर्बुद्धि दुर्योधन सर्वथा अयोग्य एवं अहंकारी था, और पांडव कहीं
योग्य एवं विनम्र थे अतएव सम्पूर्ण कौरव पक्ष किसी प्रकार पांडवों को मार्ग से
हटाना चाहता था, इसके लिए समय समय पर षड्यंत्रों का सहारा लिया गया, कभी लाक्षा
गृह में जलाकर मारने का प्रयास किया, तो कभी महा क्रोधी दुर्वासा ऋषि को, अति
विपन्नता में गुजारा कर रहे पांडवों का आतिथ्य लेने भेजा आदि | ठीक उसी प्रकार आज भी
दुर्बुद्धी एवं अहंकारी दुर्योधन (राहुल गांधी) और समस्त कौरव पक्ष (विपक्ष) अपने
को अर्जुन (मोदीजी) के समक्ष असमर्थ और असहाय पा रहे हैं, इसलिए उनकी हत्या करने
या अपध्स्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के षड्यंत्र रच रहे हैं, कभी मणि शंकर एयर
पाकिस्तान से मोदीजी को हटाने में सहायता मांगते हैं, तो कभी भीमा कोरेगांव जैसे
षड्यंत्र रचे जाते हैं | यह सत्य है कि आज के अर्जुन (मोदीजी) ने मोह के वशीभूत
होकर अपने अस्त्र रख दिए हैं और आजतक किसी भी भ्रष्टाचारी के विरुद्ध कोई
कार्यवाही नहीं की है; परन्तु अभी युद्ध छोड़ा नहीं है, सम्पूर्ण विपक्ष एवं सरकार
के भ्रष्टाचरियों को निरंतर भय है, कि कहीं उन्हें कर्तव्य बोध न हो जाए, और वे युद्ध
के लिए सन्नद्ध हो जाएं, उस स्थिति में इन सभी पापियों का सुरक्षित ठिकाना कारागृह
होगा; अतएव ये सभी मिलकर या तो षड्यंत्र द्वारा उनकी हत्या करवा देना चाहते हैं,
या अनर्गल प्रलाप कर और झूठे अप्रमाणिक आरोप लगा कर द्रोपदी को भ्रमित कर, उसे ही
अर्जुन से विमुख करना चाहते हैं | यदि द्रोपदी स्वयं अपने तारनहार अर्जुन (मोदीजी)
पर अविश्वास कर कौरवों की गोद में बैठ जाती है, तो यह धर्मयुद्ध स्वतः समाप्त हो
जाएगा और पुनः कौरवों का नंगा नाच प्रारम्भ हो जाएगा ( लाखों करोड़ के घोटाले, भगवा
आतंकवाद, लक्षित हिंसा अधिनियम आदि) |
आज कांग्रेस अध्यक्ष (दुर्योधन) जब मोदीजी को चोर कहता है, तो वह वास्तव में
मोदी (पांडव पक्ष) का उपहास उड़ाता है, अट्टहास करता है, और जनता (द्रोपदी) को
बताना चाहता है कि देखो तुम्हारे इस तारनहार अर्जुन को हमने अपनी व्यवस्था का दास
बना लिया है, जब वह बगैर किसी प्रमाण के कहता है कि राफेल सौदे में भृष्टाचार हुआ
है, तो जनता को बताना चाहता है, कि सत्ता दुर्योधन है, जो भी सत्ता में रहेगा, वह
वैसा ही करेगा जैसा हमने किया | और बताना चाहता है कि, सभी पांडव सामूहिक रूप से
राजनीति के द्यूत में द्रोपदी (जनता) को हार चुके हैं | अब यह द्रोपदी हमारी
(शासकों) दासी है | इसका चीर हरण केवल हम ही नहीं हर शासक करेगा, वैसे भी जिस दिन
इसे पाँचों भाइयों में बाँट लिया था; इसका चीर हरण तो उसी दिन हो गया था | आज
स्थिति यह है कि प्रत्येक छोटा बड़ा दरवारी (जनप्रतिनिधि) घूसखोरी, कमीशनखोरी,
कालाबाजारी, आदि तमाम अनैतिक व्यवस्थाओं (दु:शासन) की सहायता से इस निर्वसना
द्रोपदी (निरीह जनता) को अपनी गोदी में बिठाने (वोट लेने ) के लिए अपनी अनावृत
जंघा (सर्वविदित अनैतिक, अनाचारी व्यवहार) को पीट रहा है, और यह जनता अपने रक्षकों
(पतियों) की कायरता से निराश किसी अलौकिक शक्ति (कृष्ण) की आश लगाए बैठी है, जो हर
समय नहीं प्रगट होती है, अतएव अत्याचारी और भृष्ट कौरवों के तांडव से बचने के लिए,
पुनः अपने अर्जुन पर ही भरोषा करना पड़ेगा |
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