दिल्ली के
मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को भारत सरकार के गृह मंत्री शुशील कुमार शिंदे ने
एक कार्यक्रम में येडा मुख्यमंत्री कहा, संभवतः इन शब्दों का प्रयोग केजरीवाल
द्वारा धरने के समय गृह मंत्री के लिए कठोर शब्दों के प्रयोग (मैं दिल्ली का मुख्य
मंत्री हूँ मैं शिंदे को बताऊंगा कि उसे कहाँ बैठना है) की प्रतिक्रिया में किया गया
होगा, वैसे भी कांग्रेस के नेता अपने राजनैतिक विरोधियों के प्रति स्वाभाविक
आक्रामक रहते हैं और निरंतर असभ्य भाषा का प्रयोग करने के अभ्यस्त हैं. दिल्ली के
मुख्य मंत्री केजरीवाल ने अपने पूरे मंत्रिमंडल के साथ केंद्र सरकार की हठधर्मिता
के विरुद्ध धरना और प्रदर्शन किया उसे आम आदमी ने बुरा नहीं माना है; क्योंकि
दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्था दिली सरकार के आधीन है और कानून व्यवस्था बनाए रखने
वाली पुलिस केंद्र सरकार के आधीन, ऐसे में यदि दिल्ली वासियों की सुरक्षा में कमी
रहती है तो दिल्ली सरकार को केवल शर्मिंदगी हाथ लगेगी, ऐसा पहले भी होता रहा है और
लगभग सभी मुख्य मंत्रियो ने समय समय पर पुलिस को दिल्ली सरकार के आधीन करने की
मांग की है, परन्तु बहरी एवं संवेदन हीन केंद्र सरकार के कान पर जूँ भी नहीं
रेंगी, ऐसे में बहरे कानों को सुनाने के लिए धमाका आवश्यक हो जाता है और धमाके कभी
संवैधानिक एवं कानून सम्मत नहीं होते. पिछले तमाम उदाहरणों से एक बात स्पष्ट है कि
वर्तमान केंद्र सरकार पर शांतिपूर्ण आन्दोलनों और प्रदर्शनों का कोई प्रभाव नहीं
पड़ता फिर चाहे अन्नाजी का आन्दोलन हो या बाबा रामदेवजी का यह बात जनान्दोलन से
निकले केजरीवाल अच्छी तरह जान चुके हैं, इसीलिय उन्होंने सीधे वही मार्ग चुना जो
केंद्र सरकार को सहज समझ आ जाए. अपने इस आन्दोलन से उन्होंने अपने कई सन्देश
पहुँचाने में सफलता प्राप्त की है, दिल्ली पुलिस को समझ में आगया है कि दिल्ली
सरकार कि अनदेखी करना उसे महंगा पड सकता है, केंद्र सरकार को भी समझ में आगया है
कि आआप की सरकार को हलके में न ले और सबसे बड़ी बात अपने वादों को पूरा न कर पाने
के आरोप को पीछे ढकेलते हुए केंद्र के विरुद्ध जनमानस तैयार कर लिया. उनका यह
आन्दोलन सही था ऐसा कांग्रेस के नेताओं को भी लगने लगा इसीलिये तो संजय निरूपम
महाराष्ट्र में अपनी ही सरकार के विरुद्ध आन्दोलन का उच्चस्तरीय ड्रामा करने को
विवश हुए. केजरीवाल की तमाम बातों से यह तो निश्चित है कि
उन्होंने एकबार तो भारत की अतिविशिष्ट शैली की राजनीति को न केवल आम आदमी की ओर
मोड़ दिया है, अपितु पूर्व स्थापित सभी राजनैतिक दलों को अपनी कार्य शैली में परिवर्तन
करने को विवश भी किया है; एक बात ध्यान रखने वाली है कि पुरानी सड़ी गली व्यवस्थाओं
में परिवर्तन भ्रष्ट और चाटुकार लोग कभी नहीं कर सकते यह परिवर्तन कोई येडा ही कर
सकता है. भारत की राजनैतिक व्यवस्था इतनी षड-गल चुकी है कि यहाँ के आम आदमी की
स्थिति गुलामों से भी बदतर है और नेता चोर, लुटेरे और दुर्दान्त अपराधी होते हुए
भी महाराजाओं जैसा जीवन व्यतीत कर रहे हैं. सामान्य व्यक्ति की छोटी से छोटी गुहार
भी नहीं सुनी जाती है. पुलिस सहित किसी भी सरकारी विभाग में बगैर पैसे के कोई
सुनवाई नहीं होती. बलात्कारी और अपराधी, नेताओं के संरक्षण में और पैसे और प्रभाव के दम
पर स्वछन्द घूम रहे हैं और आम आदमी सब कुछ निरीह नेत्रों से ऐसे ही किसी पागल की
बाट जोह रहा है जो सत्ता में बैठ कर सत्ता में भागीदार चोर को चोर कह सके. भारतीय
जनता पार्टी जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अनुसांगिक संघटन है से राजनीति में
सादगी, सुचिता और ईमानदारी की अपेक्षा थी जो भ्रांत निकली, इन लोगों ने भी
कांग्रेस द्वारा स्थापित सुविधा भोगी अति विशिष्ट शैली की ही राजनीति को अपनाया
इसीलिये आज कांग्रेस और बी.जे.पी. की प्रकृति में कोई मूल भूत अंतर नहीं दिखाई
पड़ता है और इसी निराशा तथा हताशा का परिणाम है आम आदमी पार्टी. यद्यपि आआप के
मंत्रियों के कार्यकलापों को देख कर ऐसा नहीं लगता कि यह स्थिति अधिक दिनों तक रह
सकेगी, उनकी महत्वाकांक्षा और कार्य कलापों को देख कर प्रतीत होने लगा है कि ये
कुछ अधिक ही असभ्य, अहंकारी और निरंकुश हैं केजरीवाल इन्हें संयमित रख सकेंगे शंका
है.
बुधवार, 29 जनवरी 2014
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