ऐसा प्रतीत होता है , भारत में एक मात्र कांग्रेस पार्टी लोकतंत्र पर एक बदनुमा दाग है, जो लोकतान्त्रिक मान्यताओं का सम्मान करना बिलकुल नहीं जानती, इस पार्टी की प्रव्रत्त्ती सहज हिंसात्मक और विद्वेशात्मक है, इसीलिये अहिंसक भाषा को नहीं समझती है, लोकतान्त्रिक विधि से किये गए अहिंसात्मक सत्याग्रहों को बल पूर्वक बर्बरता से कुचल देती है; वहीँ आतंकवादी और हिंसक लोगों से संवाद भी करती है और सम्मान भी देती है: कुछ तथ्य प्रस्तुत हैं:
१। १२ जून १९७५ को जब श्रीमती इंदिरा गाँधी के चुनाव को अल्लाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा अवैधानिक ठहरा दिया तो न्यायलय के निर्णय का स्वागत करने के स्थान पर उसके विरुद्ध जंग छेड़ दी।
२। भ्रस्टाचार के विरुद्ध अहिन्षक सत्याग्रहियों पर निर्ममता पूर्वक लाठी चार्ज करवाया, जिसमें लोकनायक जय प्रकाश नारायण बुरी तरह घायल हो गए।
३। जब आन्दोलन नहीं दबा तो २६ जून १९७५ की आधी रात को इमरजेंसी लगा दी और नेताओं तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं को झूठे मामलों में बंदी बना लिया गया।
४। इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद कान्ग्रेसियों ने तीन दिन तक घूम घूम कर निरपराध सिक्खों की निर्मम ह्त्या की, उन्हें ज़िंदा जलाया, उनकी बहू बेटियों की इज्जत लूट कर ह्त्या कर दी गई और राजीव गाँधी ने यह कह कर जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है, इस कुकृत्य को स्वीकृति प्रदान करदी।
५। ४/५ जून २०११ को रात्री १ बजे भ्रष्टाचार के विरुद्ध और विदेशों में जमा काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने की मांग को लेकर बाबा रामदेव के साथ अनशन पर बैठे शांतिपूर्ण हजारों सत्याग्रहियों पर (जिनमें बच्चे स्त्री वृद्ध बहुतायात में थे) नीद की अवस्था में अचानक ५००० से अधिक सिपाहियों ने लाठी चार्ज कर दिया और बंद पंडाल में आंसू गैस के गोले छोड़े, पंडाल में आग लग गई, रात में बिजली काट दी गई, साऊनद सिस्टम और मंच तोड़ दिया गया, स्त्रियों के वस्त्र फाड़े, भगदड़ मच गई, किसी का हाथ टूटा, kइसी का पैर, किसी की गर्दन टूट गई, कीमती सामान गायब हो गया, इस प्रकार बर्बरता का नंगा नाच हुआ।
६। चिदंबरम ने मीडिया को इन द्रश्यों को दिखाने पर आपत्ति की, सरकार के मंत्रियों और नेताओं ने कहा सबक सिखाना जरूरी था।
७। ८ जून को अन्ना हजारे के एक दिन के शांतिपूर्ण अनशन को नारायण स्वामी ने नाटक कहा।
८। दिग्विजय सिंह ने कुख्यात आतंकवादी ओसामा को ओसामाजी और बाबा रामदो को ठग कहा।
९। बार बार दुत्कारने के बाद भी यह सरकार कश्मीर के आतंकवादियों से संवाद करने का प्रयास करती दिखती है।
१०। संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू को मानवीय आधार पर फांसी की सजा माफी की बात करती है।
रविवार, 12 जून 2011
बुधवार, 8 जून 2011
चौपट रजा
ऐसा लगता है कि इस समय भारत की केंद्र सरकार धूर्त, भ्रष्ट और संवेदन हीन लोगों का एक समूह है जिसका प्रधान आँख कान विहीन एक पुतला मात्र है, जो अपनी नाक के नीचे होती चोरी को भी नही देख सकता। यह चाहे ऐ राजा हो , थामस हो या कलमाडी हो को तब तक सही ठहराता है जब तक न्यायालय की चाबुक नहीं पड़ती। जब चोरी पकड़ी जाती है तो बेशर्मी से कह देता है उसे कुछ भी नहीं मालूम था। उसी प्रकार एक शान्ति पूर्ण अहिंसात्मक सत्याग्रहियों पर अचानक रात के एक बजे सरकारी गुंडों से आक्रमण करवा देता है। वही आतंक वादियों से शान्ति की बात करता है। अन्ना हजारे के शांति पूर्ण सत्याग्रह को नौटंकी करार देता है। वास्तव में यह सरकार हिंसात्मक मानसिकता वाली है। ये वाही लोग हैं जिन्होंने इन्द्रगंधी की ह्त्या पर सम्पूर्ण देश में सिखों का कत्ले आम करवाया था, उसी प्रकार राम देव से चिढ कर उनके अनुयायिओं पर बर्बरता पूर्ण आक्रमण करवाया। एसा लगता है यह सरकार केवल और केवल हिंसा की भाषा लामझाती है।
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