भारत में ३१ अक्टूबर २०१८ को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने सरदार
सरोवर बाँध के समीप गुजरात में ‘सरदार बल्लभ भाई पटेल’ की विश्व में सबसे ऊंची १८२
मीटर, ५८ मीटर आधार सहित कुल २४० मीटर ऊंची भव्य प्रतिमा का अनावरण किया, इस भव्य
प्रतिमा के निर्माण में लगभग ३००० करोड़ रुपए व्यय हुए और इसके साथ ही सबसे ऊंची प्रतिमा
का रिकॉर्ड भारत के नाम हो गया, निश्चित इससे सम्पूर्ण विश्व में भारत की
प्रतिष्ठा बढी होगी, लेकिन इसके साथ ही महाराष्ट्र ने महान मराठा नायक, मुग़ल काल
में हिन्दू साम्राज्य की स्थापना करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज की २१० मीटर
ऊंची प्रतिमा स्थापित करने की घोषणा कर दी है, इसके पीछे विचार था कि इस प्रतिमा को
चीन की स्प्रिंग टेम्पल ऑफ़ बुद्धा १५३ मीटर से ऊंची निर्मित कर इसे विश्व में
सर्वाधिक ऊंची प्रतिमा का गौरव दिलवाना जाएगा, इसके निर्माण में ३६०० करोड़ रूपए से
अधिक धन व्यय होने की संभावना है, इसके अतिरिक्त बाबा साहेब आंबेडकर की भी ३५० फुट
ऊंची कांस्य प्रतिमा १०० फुट ऊंचे आधार पर बनाने का प्रस्ताव है, जो स्टैच्यू ऑफ़
लिबर्टी से ऊंची होगी, इसके साथ ही स्तूप भी बनेगा, जिसपर अनुमानित व्यय ६०० करोड़
से अधिक होगा, इसी प्रकार अमेरिका की स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी १५१ फुट ऊंची आधार सहित
कुल ३०५ फुट ऊंची से अधिक ऊंची १५१ मीटर की भगवान् श्री राम की भव्य कांस्य
प्रतिमा अयोद्ध्या में प्रस्तावित है | निश्चित इन सभी प्रतिमाओं के बन जाने पर
भारत का मान और गौरव विश्व पटल पर बढेगा, और भारत कम से कम प्रतिमा के मामले में
तो अमेरिका को बहुत पीछे छोड़ देगा, ऐसा मानना वर्तमान राजनैतिक दलों और शासकों का
है |
यहाँ विश्व की सबसे ऊंची दस प्रतिमाओं का वर्णन पर्स्तुत है, उनमें से सरदार
पटेल को छोड़कर कोई भी प्रतिमा किसी राजनेता की नहीं है, सभी प्रतिमाएं सर्व्य्मान्य
आदर्शों के प्रतीक या सम्पूर्ण मानवता के कल्याण के लिए कार्य करने वाली विभूतियों
की है, राजनेता कभी भी सर्वमान्य नहीं हो सकते हैं, एक वर्ग उनके योगदान को जितना
महत्व देगा, दूसरे वर्ग अपनी प्रतिबद्धताओं के चलते किसी अन्य नेता को अधिक महत्व
देंगे, और वे अपने आदर्शों के प्रतीकों की भव्य प्रतिमा बनवाना चाहेंगे, फिर भारत
में तो इन प्रतिमाओं के साथ ही क्षेत्रवाद का संघर्ष एवं प्रतिस्पर्धा भी प्रारम्भ
होती हुई प्रतीत हो रही है | पटेल साहब गुजरात से थे, तो उनकी प्रतिमा गुजरात में
स्थापित हो रही है, शिवाजी महाराज मराठा थे, उनकी प्रतिमा महाराष्ट्र में
प्रस्तावित है, अब प्रत्येक प्रांत एवं समुदाय के अनेक महान पुरुस हैं, जो वहां
वन्दनीय हैं | वैसे भी पटेलजी की प्रतिमा किसी लगाव या सम्मान के रूप में बनी है,
ऐसा नहीं लगता है, वास्तव में खंडित भारत के प्रथम प्रधानमंत्री द्वारा अपने एवं
स्वयं के परिवार के अतिरिक्त सभी की उपेक्षा से कुंठित राजनेताओं द्वारा नेहरू
परिवार के महिमा मंडन से बड़ी रेख खीच कर उनके आभा मंडल को कम करने का प्रयास मात्र
किया है | शंका है कि भविष्य में यदि इस प्रकार की प्रतिस्पर्धा बढ़ी तो प्रत्येक
प्रांत, और प्रत्येक राजनैतिक दल सत्ता में आने पर अपने अपने आदर्शों की भव्य प्रतिमाएं
बनवाना प्रारम्भ न कर दे |
नाम मूर्ती
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सम्बन्ध
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स्थान
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राष्ट्र
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ऊंचाई
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निर्माण
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स्टैच्यू ऑफ़
यूनिटी
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सरदार पटेल
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सरदार सरोवर बाँध गुजरात
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भारत
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१८२ मीटर, ५८ मीटर आधार सहित कुल २४० मीटर
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३१ अक्टूबर २०१८
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स्प्रिंग टैम्पल
बुद्ध (वैरोचन)
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महात्मा बुद्ध
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लेशान, हेनान
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चीन
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१२८ मीटर, १९.३ मीटर के कमल सिंघासन एवं २५ मीटर पैडस्टल सहित कुल ऊंचाई १५३
मीटर है
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२००८
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लेक्यून सेक्टयार
(गौतम बुद्ध)
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महात्मा बुद्ध
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खातकान तांग मोंवा के पास
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म्यानमार
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११५.८ मीटर, १३.४१ मीटर के कमल सिंघासन सहित कुल ऊंचाई १२९.२ मीटर
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२००८
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उशिकु दायबुत्सू
बुद्ध प्रतिमा
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(बुद्ध अमिताभ बुद्ध)
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उशिकु आईबराकी
प्रीफ्रेक्चर
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जापान
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१०० मीटर, १० मीटर
सिंघासन और १० मीटर पैडस्टल मिलाकर १२० मीटर
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१९९३
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सेंदाई डाईकानन
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कानन, गुयानयिन
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सेंदाई मियागी प्रीफेक्चर
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जापान
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१०० मीटर
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१९९१
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गुईशान गुआनयिन
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(गुआनयिन) वेइशन
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चांगशा हुनान
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चीन
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९९ मीटर गिल्ड कांस्य
मूर्ती
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२००९
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थाईलैंड के महान
बुद्ध
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गौतम बुद्ध
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आंग थोंग
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थाईलैंड
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सोने से पुती हुई कंक्रीट
की प्रतिमा ९२ मीटर
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२००८
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किता नो मियाको
उद्यान के दाई कानन
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कानन बायुक कानन
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अशिबेत्सू होक्काइदो
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जापान
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८८ मीटर
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१९८९
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द मदर लैंड काल्स
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मातृभूमि की प्रतीक महिला
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माम्येव कुर्गेन
वोल्गोग्राद
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रूस
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८५ मीटर
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१९६७
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आवाजी कानन
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कानन गुआनयिन
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जापान
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८० मीटर, २० मीटर पैडस्टल
के साथ कुल १०० मीटर
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१९८२
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यदि विश्व में
सर्वाधिक ऊंची प्रतिमा बनवाने की विशेस आवश्यकता थी, तो किसी राजनेता की न होकर,
भारत की उन असंख्य सर्वमान्य महान विभूतियों में से (उत्तर दक्षिण को आध्यात्मिक,
सांस्क्रतिक रूप से जोड़ने वाले महर्षि अगस्त, शून्य के आविष्कारक ब्रम्हगुप्त,
भास्कराचार्य, औषधि विज्ञान के प्रणेता धन्वन्तरी, शुश्रुत, चरक, या वृहत्तर भारत
माता की भव्य मूर्ती आदि) किसी की बनाई जा सकती थी, इससे राष्ट्र में मूर्ती
निर्माण की प्रतिस्पर्धा नहीं बढ़ती | क्या भारत जैसा राष्ट्र जहां गरीबी रेखा के
नीचे २३.६% (२७.६ करोड़) लोग हैं, लगभग २१.५% लोग रोज भूखे सोते हैं, २६% अनपढ़, ५५%
बच्चे कुपोषण से ग्रसित हैं, ५१% महिलाएं रक्ताल्पता से ग्रसित हैं, ६०% से अधिक
लोगों को सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध नहीं है, पीने योग्य साफ़ पानी तक
कहीं उपलब्ध नहीं है, इन मूर्तियों पर होने वाले हजारों करोड़ रुपए के निरर्थक
अपव्यय को सहने की स्थिति में है ? चारों ओर अराजकता है, लूट हत्या बलात्कार का
बोलबाला है, सुरक्षा बलों की कमी है, उनको वेतन देने के लिए सरकारों के पास धन
नहीं है | जनता को सुलभ चिकित्सा, सुलभ शिक्षा, सुलभ सुरक्षा, आदि सरकार के कुछ
अति महत्व पूर्ण कार्य है, परन्तु उनके लिए धन का रोना है, इन मूर्तियों के लिए धन
की कोई कमी नहीं है, क्योंकि कि इस प्रकार के निर्माण कार्यों में इन माननीयों को
मोटा कमीशन प्राप्त होता है | सुरक्षा बलों के वेतन या कर्मचारियों की पेंशन से
उन्हें कुछ भी प्राप्त नहीं होने वाला है, इसलिए वह अर्थ व्यवस्था पर बोझ है, जबकि
विधायकों और सांसदों की पेंशन कोई बोझ नहीं है |
केवल स्टैच्यू से किसी भी नंगे, भूखे, रोगी,
एवं दुराचारी राष्ट्र का सम्मान कभी नहीं बढ़ता है, यह ऐसे ही है कि किसी का पूरा
परिवार रोगी, दुराचारी एवं फटे हाल हो और उसका मुखिया अपने जगह जगह से तार तार
वस्त्रों को सिल कर आवश्यक लज्जा ढकने के स्थान पर किसी एक जगह कीमती मखमल का
पेबंद लगा कर इतराने लगे | आज सर्वाधिक ऊंचे दस स्टैच्यूओं में अमेरिका का
स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी कहीं भी नहीं है, फिर भी सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्द है, इस
स्टैच्यू का निर्माण भी अमेरिका ने नहीं करवाया है, १८८६ में इसे फ्रांस ने
अमेरिका से मित्रता के प्रतीक के रूप में अमेरका को भेंट किया था | क्या अमेरिका
इस स्थिति में नहीं है, कि वह सबसे ऊंचा और भव्य स्मारक बनवा ले ? उसने स्टैच्यू
नहीं बनवाए, अपितु उसने वह किया जिससे उसको भेंट किया गया एक छोटा सा स्टैच्यू इन
सब पर भारी पड़ गया है |
समाज में या विश्व में गरिमा, सम्मान और
गौरव पाने के लिए किसी के लिए भी तीन चीजें आवश्यक हैं : १. चरित्र २. बल ३.
सम्पन्नता | हम अमेरिका के स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी से ऊंचे स्मारक बनवा कर, क्या स्वयं
के साथ छलावा नहीं कर रहे हैं ? चरित्र के विषय में, अमेरिका में एक वाटर गेट
काण्ड में १९७४ में तत्कालीन प्रेसिडेंट निक्सन को सजा सुना दी गई और उन्हें अपना
पद तो त्यागना ही पड़ा; वहीं भारत में जनप्रतिनिधि प्रत्येक कार्य में बड़ा कमीशन
वसूलते हैं, फिर चाहे बाँध, सड़क, पुल निर्माण हो, रक्षा सौदे हों, बच्चों का
भोजन(विद्यालयों में दिया जाने वाला पुष्टाहार, उनकी पुस्तकें, उनकी ड्रेस आदि),
गरीबों की दवा की खरीद पर, राष्ट्र के विकास के नाम पर मिलने वाली विकासनिधि पर,
इस राष्ट्र में लोकतंत्र के चारों स्तम्भ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं
मीडिया सभी आकंठ भृष्टाचार में डूबे हुए हैं, यहाँ अति संपन्न व्यक्ति भी सामान्य
जनता का अरबों रुपया लेकर, जनप्रतिनिधियों के सहयोग से विदेश भाग जाता है | इसी
प्रकार अमेरिका में एक अनैतिक प्रेम प्रसंग (मोनिका लेविंस्की एवं क्लिंटन) में
१९९८ में वहां के राष्ट्रपति क्लिंटन को अपराधी पाया गया और, दण्डित किया गया; वही
भारत में अधिकाँश निर्वाचित जनप्रतिनिधि दुर्दान्त अपराधी एवं व्यभिचारी हैं |
अपवाद स्वरूप कुछ को छोड़ दें, तो सभी जनप्रतिनिधियों के अनैतिक सम्बन्ध हैं, इसका
प्रभाव समाज पर यह पड़ रहा है कि नारी को माँ मानने वाले इस राष्ट्र में दुधमुही
बच्चियों से लेकर अति बुजुर्ग महिलाओं तक के साथ खुले आम बलात्कार हो रहे हैं और
अपराधी पकड से बाहर | अब बल की बात की जाय, तो अमेरिका में राष्ट्रद्रोहियों और आतंकियों
के साथ कठोर वर्ताव करने में सब एक साथ होते हैं, वहीं भारत में आतंकियों के बचाव
के लिए रात्रि में न्यायालय खुलता है, अमेरिका अपने शत्रु को ढूढकर हजारों किलो
मीटर दूर बैठे दुसरे राष्ट्र में घुस कर मारने की सामर्थ्य रखता है (ओसामा बिन
लादेन को पाकिस्तान में घुस कर मारा), वहीं हम अपने शत्रु राष्ट्र को आतंकवादी
राष्ट्र घोषित करने में डरते हैं, और अमेरिका से आग्रह करते हैं, कि वह उसे
आतंकवादी राष्ट्र घोषित करे | अब सम्पन्नता, तो अमेरिका में सामान्य जनता का जो
जीवन स्तर है, जो जन सुविधाएं हैं, जो सुरक्षा व्यवस्था है, क्या हम उसके लाखवें
अंश के बराबर भी जनता को दे पा रहे हैं ?
आज अमेरिका अपने धन के प्रभाव से विश्व के किसी भी राष्ट्र को झुकाने में सक्क्षम
है, उसके आर्थिक प्रतिबन्ध से बड़ा से बड़ा राष्ट्र भी प्रभावित हो जाता है |
अमेरिका ने अपने यहाँ भले ही कोई स्टैच्यू बनाकर धन का अपव्यय न किया हो लेकिन
उसकी सामर्थ्य के कारण आज एक छोटा सा स्टैच्यू (स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी) संसार के
तमाम विशाल मूर्तियों और स्तंभों पर भारी है | अच्छा होता भारत के नेता इस तथ्य को
समझ पाते और राष्ट्र की वास्तविक चारित्रिक, सामरिक, आर्थिक सम्पन्नता को बढाने
में ध्यान लगाते तो, कोई भी स्तम्भ या मीनार ही विश्व प्रसिद्द होती |