बुधवार, 7 जनवरी 2009

जो तोको कांटा बोवे ताहि बोव तू भाला

हमारे साथ पाकिस्तान १९४७ से ही बदतमीजी करता चला आरहा है और हम हैं की उसे सबूत पर सबूत प्रस्तुत करते चले जा रहे हैं और वह उन्हें नकारता चला जा रहा है, भारत ना तो कमजोर है और ना ही बुजदिल, ये उसके भारतीय(हिंदू) संस्कार हैं जो उसकी सहिष्णुता को कायरता की हद तक प्रस्तुत करता है, हम भूल रहे हैं कि दुष्ट के साथ दुष्टता, मक्कार के साथ मक्कारी आवश्यक है , महाभारत में पांडव सत्य के मार्ग पर होने पर भी यदि कौरवों के छल का जवाब छल से नहीं देते तो युद्ध का परिणाम कुछ और ही होता, पांडव कब के परास्त हो गए होते या लाक्छा ग्रह में जल कर मर गए होते, जुए के नकली पासों, लक्छा ग्रह में छल पूर्वक पांडवों को जला कर मारने का षड़यंत्र और अभिमन्यु की निर्मम ह्त्या का प्रति उत्तर पितामह की, द्रोणाचार्य और जयद्रथ की ह्त्या कर के दिया गया था और यह सब हुआ था कृष्ण की प्रेरणा से, आज भी भारत को उसी प्रपंच की आवश्यकता है, क्या हम जमीन में गढे पत्थर को उखाड़ने में नही लगे हैं और इस बार मारा तो मारा अब मार कर दिखाओ (ग्रह मंत्री की चेतावनी) वाली कहावत को चरितार्थ नही कर रहे हैं ? और अपेक्छा कर रहें हैं कि हमारे लिए कोई दूसरा राष्ट्र पाकिस्तान को दण्डित करेगा, जो स्वयं की सहायता नही कर सकता उसकी सहायता इश्वर भी नहीं करता है। दुष्टों के साथ दुष्टता ही एक मात्र उपाय है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि ये नेता सम्पूर्ण राष्ट्र को भ्रम में रख कर स्थिति को टालने में लगे हैं और अफजल गुरू की तरह इस कसाब को भी तब तक पालेंगे जब तक किसी अति विशिष्ट व्यक्ति के अपहरण के नाटक के पश्चात (जैसा मुफ्ती मोहम्मद सईद की पुत्री का हुआ था) इन्हे मुक्त ना कर दिया जाय। इन्हे जन सामान्य की म्रत्यु से कोई कष्ट होता भी है या नही। संभवतः जब तक बड़े राजनेताओं पर कोई आंच ना आए ये उसे भारत पर आक्रमण नही मानते हैं। बलवान और समर्थ व्यक्ति का साथ सभी देते हैं। कहावत है 'कमजोर मित्र से बलवान शत्रु ' अच्छा होता है। आज अमेरिका सहित सभी बड़े राष्ट्र भारत से इस्राइल जैसी आक्रामकता की अपेक्छा कर रहे थे जो अन्दर तक घुस कर आतंकवादियों को नष्ट करता। जहाँ तक युद्ध से जन धन की हानि की बात है तो वह तो अब भी हो रही है और पूरे विश्व के समक्छ कायर और नपुंसक के रूप में प्रस्तुत भी हो रहे हैं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि:
'टेढ़ जान संका सब काहूँ, वक्र चंद्रमही ग्रसही ना राहू '

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