मंगलवार, 1 मार्च 2016

अनैतिक

अनैतिक
९ फरवरी २०१६ को जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में जो कुछ हुआ, निश्चित वह घोर अनैतिक था | प्रषाशन के अनुसार उस दिन वहां की क्षात्र युनियन ने संसद पर हमले के दोषी अफ्जलगुरू की फांसी की वर्षगाँठ पर विरोध मनाते हुए यूनिवर्सिटी प्रांगण में घोर आपत्ति जनक राष्ट्रविरोधी नारे लगाए, जिसके अपराध में कन्हैया, खालिद आदि को राष्ट्रद्रोह के आरोप में बंदी बना लिया गया | इसके पूर्व इसी प्रकार की घटना हैदराबाद यूनिवर्सिटी में हुई थी, जिसमें पी.एच.डी. के क्षात्र रोहित और उसके साथियों को राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के आरोप में दण्डित किया गया था, बाद में रोहित ने आत्महत्या कर ली थी | इन सभी घटनाओं ने मन को उद्वेलित कर दिया था, कि क्या वास्तव में ये उच्च शिक्षा के मंदिर राष्ट्रद्रोह के अड्डे बन गए हैं ? या बीमारी कुछ और हे, और ये लक्षण मात्र हैं |
कोई भी कृत्य, चाहे वह नैतिक हो या अनैतिक, कुकृत्य हो या सत्कृत्य, अनाचार हो या सदाचार, दुष्कर्म हो या सत्कर्म, पाप हो या पुण्य, राष्ट्रद्रोह हो राष्ट्रवंदन तीन प्रकार से ही किया जाता है और किया जा सकता है    १. मन से            २. वचन से         ३. कर्म से
कोई भी कृत्य पहले मन से, फिर वचन से अर्थात वाणी से और फिर कर्म से अर्थात कार्य रूप में परिणित किया जाता है | लेकिन यह नि:तांत आवश्यक नहीं कि जो मन से किया जाय, वही वचन से भी किया जाए और कर्म से भी किया जाए, अर्थात कोई व्यक्ति मन से कुछ, वचन से कुछ, तथा कर्म कुछ और कर सकता है | किसी के मन में क्या चल रहा है, यह समझ पाना शायद अति दुष्कर है; परन्तु वाणी और कृत्य ही प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं | यदि कोई व्यक्ति वचन से सत्कर्म की बड़ी बड़ी बातें करे, और कर्म घोर अनैतिक एवं निंदनीय हों (जैसा कि कई उपदेशकों, राजनेताओं, का देखने में आया है), तो उसे सत्कर्मी कहेंगे या दुष्कर्मी ? कुछ लोग ऐसे भी मिलते है, जिनके मुख से सदैव अभद्र भाषा ही निकलती है, लेकिन निश्छल ह्रदय एवं अति सदाचारी होते हैं | यदि राष्ट्रद्रोह के नारे लगाने वाले ये क्षात्र राष्ट्रद्रोही हैं, तो सत्ता में बैठे वे राजनेता, जो राष्ट्रप्रेम पर लम्बे लम्बे व्यक्तव्य देते हैं, प्रातः – सायं राष्ट्र वंदना भी करते हैं, लेकिन राष्ट्र के खजाने का अरबों रुपया गबन कर जाते हैं, क्या हैं ? राष्ट्रद्रोही नहीं हैं? वे ठेकेदार – इंजीनियर, जो अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए निम्न श्रेणी का निर्माण कार्य करते हैं, जिसके कारण बड़ी दुर्घटना घटती है और राष्ट्र की व्यापक क्षति होती है, वे क्या हैं? वे चिकित्सक जो सरकारी वेतन लेते हुए भी, रोगी को फीस की लालच में सरकारी चिकित्सालय में नहीं देखते, वे क्या हैं? जो भी कर्मचारी पूरा वेतन लेने के उपरान्त भी जन कार्य बगैर घूस के नहीं करता, वह क्या है? व्यापारी विभिन्न उपभोगता वस्तुओं में मिलावट कर, उपभोक्ताओं के जीवन से खिलवाड़ करता है, क्या यह राष्ट्रद्रोह नहीं है ? क्या केवल मुख से नारे लगाना ही राष्ट्रद्रोह है ? यदि नारे लगाने वालों के विरुद्ध राष्ट्रद्रोह का अभियोग लगाया जा सकता है, तो इन सभी लोगों के विरुद्ध क्यों नहीं? इतने राष्ट्रद्रोही जिस राष्ट्र में निर्द्वंद घूम रहे हों, वहां प्रतिक्रिया स्वरूप इस प्रकार के नारे लगना अस्वाभाविक नहीं है |
यह लोक तंत्र है अर्थात जनता की सरकार जनता के द्वारा जनता के लिए, ऐसा कहा जाता है, लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? जिस राष्ट्र में सामान्य नागरिक सदैव असुरक्षित हो; वहां नेता सरकारी सुरक्षा गार्डों की छाया में विभिन्न श्रेणी की सुरक्षा लिए रहते हों? जहां जन सामान्य बगैर चिकित्सा के तडप तडप कर जीवन समाप्त करने को विवश हो वहां जन प्रतिनिधियों को देश में ही नहीं विदेश में भी श्रेष्ठतम चिकित्सा उपलब्ध हो ? जहाँ की ४०% से अधिक जनसँख्या दोनों समय भर पेट निकृष्ट भोजन भी न पाते हों, वहीं उनके प्रतिनिधि मात्र ३० रु में सुस्वादु पौष्टिक भोजन करते हों ? जन सामान्य के लिए सस्ती शिक्षा की व्यवस्था बिगाड़ कर इन नेताओं, व्यापारियों एवं अपराधियों ने महंगी शिक्षा का ऐसा मकड़जाल रचा कि जन सामान्य लुटने के लिए विवश है | सामान्य जनता का परिश्रम से कमाया धन बैंकों में जमा किया जाता है और सरकार की सहमति से उस धन से अरबों रु. बड़े भृष्ट व्यापारी और नेता उधार लेकर वापस नहीं करते, ऐसे में अपना धन होने पर भी सामान्य व्यक्ति धनाभाव में जीवन व्यतीत करने को विवश होता है; जीवन के हर क्षेत्र में मची लूट के कारण, जहां जन सामान्य निरीह एवं विवश है, वहां इस लोकतंत्र के विरुद्ध आक्रोश उत्त्पन्न होना स्वाभाविक है, अतएव यह समझना कठिन है कि अफ्जलगुरू ने संसद पर हमला किया था, या इन ऐयाश भ्रष्ट एवं राष्ट्रद्रोही सांसदों पर ? 
कई बार कोई कुकृत्य जो हमें जैसा दिखाई पड़ता है, वैसा होता नहीं है, इस विषय में एक छोटी सी घटना उल्लिखित कर रहा हूँ, यह न तो काल्पनिक है, न कहानी है, यह वास्तविक है | मेरे एक सहयोगी थे केंद्र सरकार के कार्यालय में अधिकारी थे, उन्होंने बताया था कि उनके अधीनस्थ चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी इतने चोर प्रतीत हुए कि कोई भी छोटा से छोटा सरकारी सामान, (उपकरणों में लगने वाला बिजली का तार, ताला, पेचकस आदि) पलक झपकते गायब हो जाता ; एक - दो माह में ही वे परेशान हो गए, नया सामन खरीदा और गायब, अब तत्काल दूसरा सामन कैसे खरीदें ; परन्तु इसमें एक विशेष बात यह थी, कि व्यक्तिगत सामन चोरी नहीं होता था | उन्होंने एक प्रयोग किया, काफी समय वे अपना कार्यालय छोड़ कर, अधीनस्थ कर्मचारियों के मध्य बैठने लगे, और बाजार से कार्यालय का सभी सामान स्वयं न लाकर उन्ही से मंगवाने लगे ( दूकाने निश्चित थीं, जहां कोई हेराफेरी नहीं होती थी ), और तो और अपनी अलमारी से रूपये भी स्वयं न निकाल कर उन्ही से निकलवाते और बचा धन तथा रसीदें भी उन्ही से रखवाते और लगभग आठ वर्षों में एक भी रु की गड़बड़ी नहीं हुई | कुछ ही दिनों में सब कुछ बदल गया, अब कोई सामान गायब नहीं होता था, इसका तात्पर्य वे चोर नहीं थे; वह केवल प्रतिक्रिया थी; जैसे ही उन्हें विश्वाष हुआ कि उनका अधिकारी भृष्ट नहीं है, तो उन्होंने भी पूर्ण सहयोग दिया था | बहुत पुरानी बात नहीं है, भारत के प्रधानमंत्री लालबहादुर शाश्त्री ने सपरिवार स्वयं सप्ताह में एक दिन का उपवास रखते हुए, राष्ट्र से एक दिन का उपवास करने का आग्रह किया था, और आश्चर्य जनक रूप से घरों की बात तो छोडिये होटल भी स्वेक्षा से बंद होते थे |

केवल नैतिक होना ही पर्याप्त नहीं है नैतिक दिखना भी चाहिए | जब तक जनतंत्र में जन उपेक्षित रहेगा और भृष्ट, दुराचारी, अनाचारी नेता जनप्रतिनिधि रहेंगे | भृष्ट कर्मचारी, अपराधी, मिलावटखोर व्यापारी और नेताओं का गठबंधन रहेगा, तब तक इस प्रकार के नारे भी जीवित रहेंगे और राष्ट्रद्रोहितापूर्ण दिखने वाले कृत्य भी; परन्तु वे कृत्य राष्ट्रद्रोह पूर्ण हो आवश्यक नहीं, वे इस भृष्ट व्यवस्था के विरुद्ध हो सकते हैं; वास्तव में राष्ट्रद्रोही ये विरोध प्रदर्शन करने वाले नहीं; अपितु ये राजनेता, माफिया, और मिलावटखोर भ्रष्ट व्यापारी एवं कर्मचारी हैं और दंड के वास्तविक पात्र भी यही लोग हैं |

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