बुधवार, 14 अगस्त 2013

बोया पेड़ बबूल का

              यद्यदाचरति श्रेष्ठ्स्तत्तदेवेतरो जनः, स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्त्दनुवर्तते।  अर्थात जैसा श्रेष्ठ लोग करते हैं उसी का अनुकरण लोग करते  हैं। भारत को स्वतंत्र हुए 66 वर्ष हो रहे हैं; यह दुर्भाग्य है कि स्वतन्त्रता के पश्चात से ही यहाँ के सत्ताधीशों का शनै: शैने: नैतिक और चारित्रिक पतन होना प्रारम्भ हुआ तो उसे रोकने के कोई उपाय नहीं किये गए।  कुछ हजार रु की चोरी से प्रारम्भ हुआ यह सफर लाख करोड़ के घोटालों तक जा पहुंचा, इतना ही नहीं अधिकाँश माननीय हत्या, बलात्कार, आगजनी जैसे घ्रडित अपराधों में लिप्त हैं, यहाँ तक कि राष्ट्र के प्रधानमंत्री के मुख पर भी कालिख पुती हुई है, शायद आज एक भी राजनेता इमानदार और चरित्रवान नहीं है तभी तो इनके विरुद्ध होने वाली जांचों को ये निर्लज्ज लोग बदलवाने का प्रयास करते हैं, तब भारत के उच्चतम न्यायालय को भी दु:खी होकर कहना पड़ा की जांच की मूल आत्मा ही मार दी गई है। इन भ्रष्ट और दुष्चरित्र नेताओं के दुराचरण पर रोक लगाने का प्रयास न्यायालय करता है तो सभी लाम बंद हो कर अपनी सामर्थ्य का दुरूपयोग कर न्यालय को पंगु बनाने का कार्य करने में भी शर्म नहीं करते है।  इन्होने चारों ओर लूट मचा रखी है। संसद और विधान सभाओं में वही कार्य होते हैं जिनमें इन्हें मोटी दलाली मिल सके फिर चाहे सेना के हथियारों की खरीद हो, गरीबों को भोजन या चिकत्सा हो, किसी नौकरी का चयन हो या स्थानान्तरण सब में खुला पैसा चलता है। यदि कोई चरित्रवान अधिकारी इन गुंडों और अपराधियों पर कानूनी शिकंजा कसना चाहता है तो या तो उसकी हत्या हो जाती है या स्थानांतर अथवा निलंबन हो जाता है।  यह सब कुछ बहुत ही भयावह है; इनके इस आचरण से जन सामान्य में धारणा बनती जा रही है कि प्रजातंत्र के मंदिर संसद और विधान सभाएं अपराधियों और राष्ट्रद्रोही दलालों के सुरक्षित अड्डे बन गए हैं।  आज ऐसा लगता है यह जनता के द्वारा, जनता के लिए जनता की सरकार ना होकर ; अपराधियों के लिए अपराधियों की सरकार है। इनके भ्रष्ट आचरण के  विरुद्ध न्यायालय के निर्णय को मानते नहीं, न्यायोचित शांतिपूर्ण अहिंसक जन आन्दोलन को लाठी और गोली द्वारा कुचल देते हैं, तर्क देते है हम चुने हुए जन प्रतिनिधि हैं यदि कुछ जनता के लिए करना चाहते हो तो चुनाव लड़ कर आओ, क्या भारत की सवा सौ करोड़ जनता चुनाव लडेगी ? जब सुधार के सभी मार्ग कोई दुराचारी बंद कर दें तो जनता के पास हिंसा के अतिरिक्त कौनसा मार्ग बचता है ?
           आज इन श्रेष्ठ दुराचारियों के दुराचरण का सामान्य जनता अनुसरण कर रही है।  पूरे देश में लूट हत्या बलात्कार का बोलबाला है , माताओं बहनों का घर से निकलना दुष्वार हो गया है, चारों और आतंक ही आतंक है राष्ट्र भक्तों को जेल में डाला जा रहा है, आतंकियों और देशद्रोहियों को महिमा मंडित किया जा रहा है , वीर जवानों और सिपाहियों के बलिदान पर शक किया जा रहा है। इन राष्ट्र द्रोहियों के रहते देश की सीमाएं असुरक्छित हैं।  क्या ऐसे में स्वतंत्रता का उत्सव मनाया जा सकता है ? हाँ माननीय तो मनाएँगे क्यों कि उन्हें हर प्रकार के अपराध करने की स्वतन्त्रता है लेकिन जन सामान्य को भूख से मरने की, हर प्रकार के अत्याचार सहने की बीमारी और आतंक से घुट घुट कर मरने की विवशता है। कहाँ है स्वतंत्रता ? यह राष्ट्र पर्व उल्लास मनाने का नहीं अपितु चिंतन करने का है कि कैसे इन दुराचारियों और अपराधियों से राष्ट्र मुक्त हो और इसकी बागडोर विदेशी चाटुकार दुष्चरित्र हाथों से हट कर चरित्रवान एवं देशभक्त हाथों में आए। 

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