गुरुवार, 15 अगस्त 2013

दुर्घटना , दलाली या षड्यंत्र

                 भारत के ६७ वें स्वतंत्रता दिवस के एक दिन पूर्व जिस प्रकार अचानक दो सैनिक पनडुब्बियों में आग  गई और उनमें से एक सिन्धुरक्षक न केवल नष्ट हो गई अपितु साथ में नौ सेना के १८ बहादुर अधिकारी और सैनिक शहीद हो गए वह राष्ट्र के लिए हताशा भरा रहा सम्पूर्ण राष्ट्र स्तब्ध रह गया, किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया।  जहाँ एक दिन पूर्व विक्रांत के जलावतरण का उल्लास मना रहे थे इस दुखद सूचना ने हर्ष और उत्साह पर तुषारापात कर दिया।  प्रश्न यह उठता है कि क्या एक साथ दो पनडुब्बियों में अचानक आग लग जाना वह भी विक्रांत के जलावतरण और स्वतंत्रता दिवस के एक दिन पूर्व , क्या मात्र एक दुर्घटना थी या कुछ और ? इस राष्ट्र में प्रारम्भ से ही रक्षा सौदों सहित सभी सौदों  में मंत्रियो ,नेताओं और अधिकारियों द्वारा दलाली ली जाती रही है ; यहाँ तक की प्रधानमंत्री का नाम भी इस प्रकार की दलाली में आता रहा है।  जब कोई कम्पनी करोड़ों रु की दलाली देगी तो क्या निम्न गुणवत्ता का सामन नहीं दे सकती और यदि ऐसा हुआ है तो उसकी जाँच कौन करेगा ? इतिहास गवाह है तमाम सौदों की दलाली की जाँच का आडम्बर किया गया परन्तु परिणाम क्या निकला ? किसको दोषी पाया गया ? इस प्रकार दलाली ले कर कम गुणवत्ता का सैन्य सामान लेना न केवल जघन्य अपराध है अपितु देशद्रोह भी है और उसके लिए मंत्री से लेकर संत्री तक सभी दोषी हैं। यह कार्य किसी एक या दो व्यक्तियों का नहीं है , अपितु पूरा का पूरा तंत्र इस देशद्रोह में सम्मिलित हैं। अपनी जेब में कुछ करोड़ रु आगये सैनिक मरें तो मरें , उन शहीदों के परिवारों को कुछ  लाख रु देकर और घडियाली आंसू बहा कर कर्तव्य मुक्त हो जाएंगे क्यों कि उनको तो शहीद होने के लिए ही वेतन मिलता है, ऐसा राजनेताओं का मानना है । क्या इन दोनों पनडुब्बियों में अचानक आग लगाना, कम गुणवत्ता के कल पुर्जे लगे होना हो सकता ?
                 यदि ऐसा नहीं है तो क्या यह आतंकवादियों और देह्द्रोहियों द्वारा रचा षड्यंत्र हो सकता है। इतनी सुरक्षित जगह पर कोई बाहरी व्यक्ति कैसे पहुँच सकता है वैसे भारत में किसी बाहरी षड्यंत्रकारी की आवश्यकता ही नहीं है जब संसद से लेकर सड़क तक देशद्रोहियों की भरमार है।  बोफोर्ष दलाली का अपराधी क्वात्रोची किस प्रकार भारत से सुरक्षित न केवल निकल गया अपितु उसका बैंक खाता भी चालू कर दिया गया और तो और उसके विरुद्ध मुकदमा भी वापस ले लिया गया।  इस राष्ट्रद्रोह पूर्ण कार्य में क्या पूरा तंत्र सम्मिलित नहीं था ? इसी प्रकार भोपाल गैस त्रासदी का अपराधी एंडर्सन भारत से किस प्रकार सुरक्षित निकल गया ? क्या इसमें सत्ता के सर्वोच्च शिखर से लेकर नीचे तक सभी मिले नहीं थे ? बहुत ही लज्जा की बात है कि इस राष्ट्र की बागडोर दलालों और देशद्रोहियों के पास है , जो आतंकवादियों की म्रत्यु पर तो फूट फूट कर रोते हैं और आतंकवादियों के द्वारा मारे गए जांबाज अधिकारियों की शहादत पर संवेदना व्यक्त करना तो दूर , उसे अपमानित करते हुए उस मुटभेड को ही फर्जी बताने में लज्जा का अनुभव नहीं करते। क्या ऐसे आतंकवाद समर्थित देशद्रोहियों के रहते ऐसे हादसे फिर नहीं होंगे। 

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